गरल भरा हमने गागर में। कैसे प्यास बुझेगी मन की, खारा जल पाया सागर में।। कथा-कीर्तन और जागरण, रास न आये मेरे मन को। आपाधापी की झंझा में, होम कर दिया इस जीवन को। वन का पंछी डोल रहा है, भिक्षा पाने को घर-घर में। कैसे प्यास बुझेगी मन की, खारा जल पाया सागर में।। आज धरा-रानी के हमने, लूट लिए सारे आभूषण। नंगे पर्वत, सूखे झरने, अट्टहास करता है दूषण। नहीं जवानी और रवानी, कायरता है नर-नाहर में। कैसे प्यास बुझेगी मन की, खारा जल पाया सागर में।। खनन बढ़ा है, खनिज घटे हैं, नकली मिलते आज रसायन। हारे का हथियार बचा है, गीता-रामायण का गायन। कैसे ओढ़ूँ और बिछाऊँ, सिमटा हूँ छोटी चादर में। कैसे प्यास बुझेगी मन की, खारा जल पाया सागर में।। |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
मंगलवार, 20 मार्च 2012
"गरल भरा हमने गागर में" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि &qu...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
स्थितियों परिस्थितियों को उकेरती सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएंसादर!
रची उत्कृष्ट |
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच की दृष्ट --
पलटो पृष्ट ||
बुधवारीय चर्चामंच
charchamanch.blogspot.com
कैसे ओढ़ूँ और बिछाऊँ,
जवाब देंहटाएंसिमटा हूँ छोटी चादर में।
पर्यावरण संकट को काव्य में बखूबी ढाला आपने...
जवाब देंहटाएंसादर.
आज धरा-रानी के हमने,
जवाब देंहटाएंलूट लिए सारे आभूषण।
नंगे पर्वत, सूखे झरने,
अट्टहास करता है दूषण।
नहीं जवानी और रवानी,
कायरता है नर-नाहर में।
कैसे प्यास बुझेगी मन की,
खारा जल पाया सागर में।।
सुंदर पोस्ट
my resent post
काव्यान्जलि ...: अभिनन्दन पत्र............ ५० वीं पोस्ट.
खनन बढ़ा है, खनिज घटे हैं,
जवाब देंहटाएंनकली मिलते आज रसायन।
हारे का हथियार बचा है,
गीता-रामायण का गायन।...sndeshprat rachna..
आज धरा-रानी के हमने,
जवाब देंहटाएंलूट लिए सारे आभूषण।
नंगे पर्वत, सूखे झरने,
अट्टहास करता है दूषण।
नहीं जवानी और रवानी,
कायरता है नर-नाहर में।
कैसे प्यास बुझेगी मन की,
खारा जल पाया सागर में।।
खनन बढ़ा है, खनिज घटे हैं,
नकली मिलते आज रसायन।
हारे का हथियार बचा है,
गीता-रामायण का गायन।
कैसे ओढ़ूँ और बिछाऊँ,
सिमटा हूँ छोटी चादर में।
पर्यावरण सचेत पारि- तंत्रों का सहज मानवीकरण करती भावबोध संसिक्त रचना .बहुत खूब कहा है -
'कैसे इस मन को बहलाऊ गिरजे .-मस्जिद मंदिर जाकर '
बढिया. बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar rachna ! gaagar me sagar bhar diya aapne
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और सशक्त प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंसही कहा अच्छी चीजों को छोड़ दिया है.
जवाब देंहटाएंबढिया. बहुत सुंदर..
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा और शानदार प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंकैसे प्यास बुझेगी मन की,
जवाब देंहटाएंखारा जल पाया सागर में।।
-बहुत सुन्दर गीत!!
sarthak post hae prakrti par manav ki krurta ki prakashtha par dhyan aakarshit karaya hae sir aapne aabhar.
जवाब देंहटाएंबढ़िया गीत , सुन्दर सन्देश
जवाब देंहटाएंवन का पंछी डोल रहा है,
जवाब देंहटाएंभिक्षा पाने को घर-घर में।
कैसे प्यास बुझेगी मन की,
खारा जल पाया सागर में।।
इस कविता में जहां एक ओर पर्यावरण के प्रति चिंता जताई गई है वहीं दूसरी ओर आध्यात्मिक अनुभूति भी हो रही है।
गरल मिला है,
जवाब देंहटाएंअभी मिलेगा अमृत,
थोड़ा श्रम बाकी है।
sagar jaisee hee gehri rachna!
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत ही गहराई लिए हुए रचना है...
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना, बधाई।
जवाब देंहटाएंवाह ...बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंekdam lazabab.....
जवाब देंहटाएंसमसामयिक दुर्दशा पर तीखा प्रहार ! अतिसुन्दर सर जी !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ...बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया ,सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंI'm not sure where you're getting your info, but great topic.
जवाब देंहटाएंI needs to spend some time learning much more or understanding more.
Thanks for wonderful information I was looking for this info for my
mission.
Feel free to surf my web site http://bangbrosblog.sexusblog.com