आयोग है
राजनीति का शिकार
कहने पर प्रतिबन्ध
सुनने पर प्रतिबन्ध
खाने पर प्रतिबन्ध
पीने पर प्रतिबन्ध
जाने पर प्रतिबऩ्ध
जीने पर प्रतिबऩ्ध
मँहगाई की मार
रिश्वत का बाजार
निर्धन की हार
दहेज की भरमार
नौकरशाही का रौब
पुलिस का खौफ
दलित की पुकार
बेरहम संसार
कानून का द्वार
बन्दी हैं अधिकार
सोई है सरकार
जागे हैं मक्कार
नालों का संगम
गंगा है बेदम
बढ़ता प्रदूषण
नारि का शोषण
शिक्षा का जनाजा
भिक्षा का खजाना
बस्ता है भारी
ढोना लाचारी
मानवाधिकार
कोई नही सुनता पुकार
मानवाधिकार
जवाब देंहटाएंकोई नही सुनता पुकार
बहुत सटीक चित्रण किया है।
सूपरररररररररररररररररररररररररररर
जवाब देंहटाएंबेहतर लेखन !!
जवाब देंहटाएंसटीक चित्रण =>मानवाधिकर =अन्याय ,अविचार का विस्तार
जवाब देंहटाएंअलग मिजाज़ की बंदिश व्यंग्य प्रधान .
जवाब देंहटाएंजाने पर प्रतिबऩ्ध/नारी ,नारीत्व
कोई नहीं सुनता पुकार ,आयोग है राजनीति का शिकार ................अच्छा चित्रण !!
जवाब देंहटाएंजब मानवों को अपने अधिकारों के लिये लड़ना पड़ता है तो औरों की क्या बिसात।
जवाब देंहटाएंइतना कुछ होते हुए भी देश चल रहा है ..कमाल है..
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंsamvedanheenata par sajeev kataksh...!
जवाब देंहटाएंसही कहा ....ज़ोर से चिल्लाने पर भी अब कोई नहीं सुनता
जवाब देंहटाएंसटीक और अच्छा चित्रण
जवाब देंहटाएंबढिया सटीक रचना, बधाई।
जवाब देंहटाएंrecent post हमको रखवालो ने लूटा