दाँव-पेंच के खेल को, समझ गया जनतन्त्र।।
लोकतन्त्र के खेल में, काम करेगा यन्त्र।१।
सभी दलों के सदन में, थे प्रतिकूल विचार।
संसद में होती सदा, लोकतन्त्र की हार।२।
थूक-थूककर चाटते, उनका क्या आधार।
किन्तु देखने को मिले, रंगे हुए कुछ स्यार।३।
ताल ठोककर शान से, करते प्रबल प्रहार।
किया पलायन सदन से, जीत गई सरकार।४।
गरजे थे बरसे नहीं, किया दिखावा मात्र।
उल्लू सीधा कर रहे, बे-पेंदे के पात्र।५।
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शनिवार, 8 दिसंबर 2012
"दोहे-समझ गया जनतन्त्र" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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गरजे थे बरसे नहीं, किया दिखावा मात्र।
जवाब देंहटाएंउल्लू सीधा कर रहे, बे-पेंदे के पात्र।
वाह लाजवाब व्यंग.
रामराम
bahut hi jordar prahar, behatreen prastutiथूक-थूककर चाटते, उनका क्या आधार।
जवाब देंहटाएंकिन्तु देखने को मिले, रंगे हुए कुछ स्यार।३।
...........
गरजे थे बरसे नहीं, किया दिखावा मात्र।
उल्लू सीधा कर रहे, बे-पेंदे के पात्र।५।
थूक-थूककर चाटते,उनका क्या आधार।
जवाब देंहटाएंकिन्तु देखने को मिले,रंगे हुए कुछ स्यार,,,,
बेहतरीन व्यंग,,,,
तब भी होगा कुछ ऐसा ही
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी ये सभी टर्न कोट हैं .आज इधर कल उधर .कोई बताये ये हैं किधर ?सत्ता के इशारे पे नांचने वाले नट नटी हैं ये .नकटे नकटुवे हैं सब सत्ताखोरों के दल्लें दल्लियाँ हैं सब के सब .खूब सूरत तंज किया है तबीयत खुश कर दी .
तीखा कटाक्ष है ,आभार
जवाब देंहटाएंbahut sundar v sarthak prastuti .aabhar
जवाब देंहटाएंहम हिंदी चिट्ठाकार हैं
ताल ठोककर शान से, करते प्रबल प्रहार।
जवाब देंहटाएंकिया पलायन सदन से, जीत गई सरकार।४।
सही कह रहे हैं आप स्थिति तो कुछ ऐसी ही है .बहुत सुन्दर प्रस्तुति .विचारणीय अभिव्यक्ति .बधाई
प्रयास सफल तो आज़ाद असफल तो अपराध [कानूनी ज्ञान ] और [कौशल ].शोध -माननीय कुलाधिपति जी पहले अवलोकन तो किया होता .पर देखें और अपने विचार प्रकट करें
सभी दलों के सदन में थे प्रतिकूल विचार ,
जवाब देंहटाएंफिर भी जीत गयी एफडीआई,लोकतंत्र गया हार !
बेहतरीन दोहे लिखे हैं आपने, बहुत मारक। घाव करें गंभीर जैसी बात तो है इन दोहों में, आपकी सशक्त लेखनी को प्रणाम।
जवाब देंहटाएंbadhiya dohe.
जवाब देंहटाएंवाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार
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