सज्जनता बेहोश हो गई,
दुर्जनता पसरी आँगन में।
कोयलिया खामोश हो गई,
मंडराती हैं चील चमन में।।
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अबलाओं के कपड़े फाड़े,
लज्जा के सब गहने तारे,
यौवन के बाजार लगे हैं,
नग्न-नग्न शृंगार सजे हैं,
काँटें बिखरे हैं कानन में।
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मानवता की झोली खाली,
दानवता की है दीवाली,
कितना है बेशर्म-मवाली,
अय्यासी में डूबा माली,
दम घुटता है आज वतन में।
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रवि ने शीतलता फैलाई,
पूनम ताप बढ़ाने आई,
बदली बेमौसम में छाई,
धरती पर फैली है काई,
दशा देख दुख होता मन में।
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सुख की खातिर पश्चिमवाले,
आते हैं होकर मतवाले,
आज रीत ने पलटा खाया,
हमने उल्टा पथ अपनाया,
खोज रहे हम सुख को धन में।
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श्वान पालते बालों वाले,
बौने बने बड़े मनवाले,
जो थे राह दिखाने वाले,
भटक गये हैं बीहड-वन में।
मंडरातीं हैं चील चमन में।।
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मानवता की झोली खाली,
जवाब देंहटाएंदानवता की है दीवाली,
कितना है बेशर्म-मवाली,
अय्यासी में डूबा माली,
दम घुटता है आज वतन में।
मंडरातीं हैं चील चमन में,,,
सटीक,बहुत सुन्दर प्रस्तुति,,,
recent post : समाधान समस्याओं का,
"mulk ki chile sabhi dilli aakr bs guyee, insaniyat ke nam par haivaniyat bn dsgyee,;;;;;;" भटक गये हैं बीहड-वन में।
जवाब देंहटाएंमंडरातीं हैं चील चमन में।।
क्या बात है!.. सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर, बेहतरीन...
जवाब देंहटाएंbilkul sahi keha sir...sarthak abhivyakti
जवाब देंहटाएंजारी रहिये, बधाई !!
जवाब देंहटाएंआज के हालात का तप्सरा है यह मार्मिक गीत .जबकि व्यवस्था हक़ मांगने वाले निहथ्थों से इतना डरी हुई है ,एक भी सत्ता पक्ष का सांसद आधी आबादी के सुरक्षा का हक़ मांगने वाले युवाओं के सामने आके यह कहना का हौसला भी नहीं जुटा पा रहा है :
जवाब देंहटाएं"हम आपके साथ हैं ,जो भी अधिकतम संभव होगा हम करेंगे ,ज़रुरत पड़ी तो संविधान में ,क़ानून की बलात्कार सम्बन्धी धारा में संशोधन करेंगे ,यही मौक़ा है जब इस मुद्दे पे पक्ष विपक्ष सहमत भी हैं "
पूछा जा सकता है क्या संविधान संशोधन सिर्फ शाहबानों का हक़ मारने तक सीमित रहा है .आज जबकि एक निर्भय बेटी ,निर्भय सिस्टर ,निर्भय हिन्दुस्तान की दोस्त मौत को ललकारती हुई हौसला बनाए हुए है ,युवा सम्राट कहाँ है ? कहाँ है कांग्रेस का वह हाथ जो आम आदमी के साथ होने का दम भरता है ?सिस्टर निर्भय ने एक राष्ट्रीय चेतना जगाई है औरतों को हौसला न छोड़ने की एक मुहीम छेड़ी है
सत्ता पक्ष के सांसद क्या कर रहें हैं .शीला दीक्षित भले मोदी जी की तरह तीन टर्म भुगता चुकी हैं अब उन्हें दिल्ली की आंच से बचके इस्तीफा देना चाहिए .ये आंच रुकने वाली नहीं है .निहथ्थे युवाओं के हाथ में केरोसीन के पीपे नहीं है जो उनपे डंडे बरसाए जा रहें हैं ?किसी का घर फूंकने नहीं निकले हैं लोग वह तो अपने आप फुंकेगा नपुंसत्व की आंच से ,आत्म हीनता से इन सांसदों की .
एक प्रतिक्रिया ब्लॉग पोस्ट :
रविवार, 23 दिसम्बर 2012
"मंडराती हैं चील चमन में" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
सज्जनता बेहोश हो गई,
दुर्जनता पसरी आँगन में।
कोयलिया खामोश हो गई,
मंडराती हैं चील चमन में।।
अबलाओं के कपड़े फाड़े,
लज्जा के सब गहने तारे,
यौवन के बाजार लगे हैं,
नग्न-नग्न शृंगार सजे हैं,
काँटें बिखरे हैं कानन में।
मंडरातीं हैं चील चमन में।।
मानवता की झोली खाली,
दानवता की है दीवाली,
कितना है बेशर्म-मवाली,
अय्यासी में डूबा माली,
दम घुटता है आज वतन में।
मंडरातीं हैं चील चमन में।।
रवि ने शीतलता फैलाई,
पूनम ताप बढ़ाने आई,
बदली बेमौसम में छाई,
धरती पर फैली है काई,
दशा देख दुख होता मन में।
मंडरातीं हैं चील चमन में।।
सुख की खातिर पश्चिमवाले,
आते हैं होकर मतवाले,
आज रीत ने पलटा खाया,
हमने उल्टा पथ अपनाया,
खोज रहे हम सुख को धन में।
मंडरातीं हैं चील चमन में।।
शावकसिंह खिलाने वाले,
श्वान पालते बालों वाले,
बौने बने बड़े मनवाले,
जो थे राह दिखाने वाले,
भटक गये हैं बीहड-वन में।
मंडरातीं हैं चील चमन में।।
बहुत उम्दा रचना | लाजवाब |
जवाब देंहटाएं.सार्थक अभिव्यक्ति नारी महज एक शरीर नहीं
जवाब देंहटाएं"दशा देख दुख होता मन में।
जवाब देंहटाएंमंडरातीं हैं चील चमन में।।"
Saadar
सार्थक प्रस्तुति !!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना...
जवाब देंहटाएंसार्थक भावाव्यक्ति..
सादर
अनु
सटीक रचना ....चिंता और दुखी होना वाजिब है !
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें! अच्छे समय के लिए ...
एक दुर्दशा देखी हमने..
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता।
आप जितनी संवेदना यदि प्रत्येक व्यक्ति में हो तब इस देश का कल्याण हो।
जवाब देंहटाएंरचना को कोई एक शेर पसंद होता तो कॉपी करके कहता की ये पसंद आया.लेकिन इस रचना के हर हर शेर अपने अन्दर एक अपनापन लिए इतने सुन्दर बन पड़े हैं की ये दिल से कह सकता हूँ की सभी पसंद आये.daer sar g
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