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सुबह करते हैं, शाम करते हैं
हर खुशी तेरे नाम करते हैं
ओढ़ करके ग़मों की चादर को काम अपना तमाम करते हैं जब भी दैरो-हरम में जाते हैं हम तिरा एहतराम करते हैं देख करके जईफ लोगों को
हम अदब से सलाम करते हैं
ज़िन्द्ग़ी चार दिन का खेला है
किसलिए कत्लो-आम करते हैं
आशिकों की यही हक़ीक़त है "रूप" उनको गुलाम करते हैं |
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बुधवार, 19 दिसंबर 2012
"काम अपना तमाम करते हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सपना जो पूरा हुआ! सपने तो व्यक्ति जीवनभर देखता है, कभी खुली आँखों से तो कभी बन्द आँखों से। साहित्य का विद्यार्थी होने के नाते...
आशिक़ों की हक़ीक़त पर सुन्दर और सटीक बयान।
जवाब देंहटाएंबेहतर लेखन !!
जवाब देंहटाएंसुन्दर और सटीक रचना..
जवाब देंहटाएंसरजी बेहतरीन गजल है हरअशआर बोलता है :देख करके जईफ लोगों को
जवाब देंहटाएंहम अदब से सलाम करते हैं
ज़िन्द्ग़ी चार दिन का खेला है
किसलिए कत्लो-आम करते हैं
ज़िन्द्ग़ी चार दिन का खेला है
जवाब देंहटाएंकिसलिए कत्लो-आम करते हैं
..बहुत खूब...लाज़वाब ग़ज़ल..
'काम अपना तमाम करते हैं' मुहावरे का 'श्लेशात्म्क़ प्रयोग'!
जवाब देंहटाएं..बहुत खूब...लाज़वाब ग़ज़ल..
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