सबकुछ वही पुराना सा है!
कैसे नूतन सृजन करूँ मैं?
कभी चाँदनी-कभी अँधेरा,
लगा रहे सब अपना फेरा,
जग झंझावातों का डेरा,
असुरों ने मन्दिर को घेरा,
देवालय में भीतर जाकर,
कैसे अपना भजन करूँ मैं?
कैसे नूतन सृजन करूँ मैं?
वो ही राग-वही है गाना,
लाऊँ कहाँ से नया तराना,
पथ तो है जाना-पहचाना,
लेकिन है खुदगर्ज़ ज़माना,
घी-सामग्री-समिधा के बिन,
कैसे नियमित यजन करूँ मैं?
कैसे नूतन सृजन करूँ मैं?
बना छलावा पूजन-वन्दन
मात्र दिखावा है अभिनन्दन
चारों ओर मचा है क्रन्दन,
बिखर रहे सामाजिक बन्धन,
परिजन ही करते अपमानित,
कैसे उनको सुजन करूँ मैं?
गुलशन में पादप लड़ते हैं,
कमल सरोवर में सड़ते हैं,
कदम नहीं आगे बढ़ते हैं,
पावों में कण्टक गड़ते है,
पतझड़ की मारी बगिया में,
कैसे मन को सुमन करूँ मैं?
|
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बुधवार, 26 दिसंबर 2012
"कैसे नूतन सृजन करूँ मैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सर्वत्र वही प्रागाभिहित रूप है..,
जवाब देंहटाएंकेसे नूतन सृजन करूँ मैं..,
घृत हविर गृह दान के हीन..,
कैसे नव हुति यजन करूँ मैं.....
शानदार लेखन,
जवाब देंहटाएंजारी रहिये,
बधाई !!!
बना छलावा पूजन-वन्दन
जवाब देंहटाएंमात्र दिखावा है अभिनन्दन
चारों ओर मचा है क्रन्दन,
बिखर रहे सामाजिक बन्धन,
परिजन ही करते अपमानित,
कैसे उनको सुजन करूँ मैं?
शानदार प्रस्तुति !!
अब सृजन से ही कुछ होगा। कवि अपना धर्म भूल गए इसलिए ही ऐसा हो रहा है।
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब वाह!
जवाब देंहटाएंआप शायद इसे पसन्द करें-
कवि तुम बाज़ी मार ले गये!
bahut sundar kavita
जवाब देंहटाएंगुलशन में पादप लड़ते हैं,
जवाब देंहटाएंकमल सरोवर में सड़ते हैं,
कदम नहीं आगे बढ़ते हैं,
पावों में कण्टक गड़ते है,
पतझड़ की मारी बगिया में,
कैसे मन को सुमन करूँ मैं?
कैसे नूतन सृजन करूँ मैं?
गहन भाव लिये सार्थक अभिव्यक्ति
सादर
बहुट 'वेदना' है कविता में,इस में मन की पीड़ा |
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति ओर सार्थक अभिव्यक्त गुलशन में पादप लड़ते हैं,
जवाब देंहटाएंकमल सरोवर में सड़ते हैं,
कदम नहीं आगे बढ़ते हैं,
पावों में कण्टक गड़ते है,
पतझड़ की मारी बगिया में,
कैसे मन को सुमन करूँ मैं?
कैसे नूतन सृजन करूँ मैं?
सटीक लेखन
जवाब देंहटाएंआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 27 -12 -2012 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं....
आज की हलचल में ....मुझे बस खामोशी मिली है ............. संगीता स्वरूप . .
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति,,,,
जवाब देंहटाएंrecent post : नववर्ष की बधाई
bahut sundar
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना...
जवाब देंहटाएंअति उत्तम...
:-)
बहुत ही बढ़िया सर!
जवाब देंहटाएंसादर
बिखर रहे सामाजिक बन्धन,
जवाब देंहटाएंपरिजन ही करते अपमानित,
कैसे उनको सुजन करूँ मैं?
bahut hi sundar rachana badhai sir .
सृजन बेल नित बढ़ती जाती,
जवाब देंहटाएंकविता मन के भाव जताती।