ये डाल-डाल निकले. वो पात-पात निकले।
पाने को मत हमारे, वो साथ-साथ निकले। परदेशियों के आगे, घुटने वो टेकते हैं, ये देश से दलाली, करने की बात निकले। निर्धन का जो अभी तक, दामन भी सिल न पाये,
हथियाने को वतन का, वो स्वर्णथाल निकले।
वो फसल काटने को, गैरों को ला रहे हैं, सपने हसीं दिखाकर, खाने को माल निकले। वोटों के ये भिखारी, मक्कार हो गये हैं, अपनों के वास्ते ही, बुनने को जाल निकले। है नाम भी मुलायम और "रूप" भी मुलायम, माया को साथ लेकर, करने हलाल निकले। |
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शुक्रवार, 7 दिसंबर 2012
"वो पात-पात निकले" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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जवाब देंहटाएंसूचनार्थ!
बहुत खूब है सर .
जवाब देंहटाएंइस देश का यारो क्या होगा
जवाब देंहटाएंbade satir erodo ko liye,ye sabhi nakkal nikle
जवाब देंहटाएंkya bat kahi hai? ham sir peet peet kar rote rahen lekin desh ke halat bad se badtar hote ja rahe hain.
जवाब देंहटाएंkajal jee ne sach hi likha hai.
उत्कृष्ट लेखन !!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति,,,
जवाब देंहटाएंये तो इस देश की जनता को बना कर उल्लू ...हर रेस में आगे हैं निकले
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ...
जवाब देंहटाएं"ये तो इस देश की जनता को बना कर उल्लू ...हर रेस में आगे हैं निकले"bilkul sahi kaha anju ji
राजनीति में घातें हैं, प्रतिघातें हैं।
जवाब देंहटाएंसबके सब टुकड़ खोर हैं .ये मुसलामानों के चचा वो दलितों की जयललिता .राजकुमारी माया .
जवाब देंहटाएंअबे तू खान्ग्रेसी है क्या ?नहीं हैं तो यह पोस्ट पढ़ यदि हैं तो खिसक ले वर्ना अपनी पोल अपने आगे खुलता देखेगासनातन ब्लोगर्स वर्ल्ड ke is post par aapke is rachna ko link kiya gaya hai aap apni rai avasay den.
जवाब देंहटाएंati sundar samsmaran!
जवाब देंहटाएंवर्तमान परिस्थिति के लिए उत्तम रचना।
जवाब देंहटाएं