कर्कश
सुर से तो होती है, खामोशी की तान भली
जल
जाता शैतान पतिंगा, शम्मा सारी रात जली
दो
पल का तूफान, तबाही-बरबादी को लाता है
कभी
न थकती मन्द हवा, जो लगातार दिन-रात चली
बचपन-यौवन
साथ न देता, कभी किसी का जीवन भर
सिर्फ
बुढ़ापे के ही संग में, इस जीवन की शाम ढली
सूखे
भी हों पात शज़र के, वो छाया ही देते हैं
छलते
हैं मुस्कानों से, ग़ुलशन के छलिया फूल-कली
करता
दग़ा हमेशा है ये, नहीं “रूप” पर जाना तुम
लोग
हमेशा से कहते हैं, होता है ये हुस्न छली
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1800 की बधाई दे जाता हूँ
जवाब देंहटाएं18000 भी जल्दी से आये
शुभकामनाऎं कह जाता हूँ !
बहुत बहुत शुभकामनाएं..
जवाब देंहटाएं1800
बहुत बहुत बधाई....
जवाब देंहटाएंक्या करू,शास्त्री जी,,, मलेरिया बुखार के कारन १0 दिन से सबके पोस्ट पर नही पहुच पा रहा,,,समय निकाल कर पहुचने की कोशिश करता हूँ किन्तु,,,,सेहत साथ नही दे रही,,
जवाब देंहटाएंक्षमा करे ,,आभार
बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं.,शास्त्री जी आप को..
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा.
जवाब देंहटाएंरामराम.
दो और दो पांच का खेल, ताऊ, रामप्यारी और सतीश सक्सेना के बीच
सुन्दर सीख देती गज़ल..
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया शानदार प्रस्तुति १८०० वीं पोस्ट के लिए हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई ......आप का लेखन ऐसे ही निरंतर चलता रहें
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