मित्रों!
आज एक कव्वाली बन पड़ी है...!
नजरों से गिराने की ख़ातिर,
पलकों पे सजाये जाते
हैं।
मतलब के लिए सिंहासन पर, उल्लू भी बिठाये जाते
हैं।।
जनता ने चुना नहीं जिनको, वो चोर द्वार से आ
पहुँचे,
माटी के बुत हैं असरदार,
सरदार बनाये जाते हैं।
ढका हुआ भाषण से ही, ये लोकतन्त्र का चेहरा है
लोगों को सुनहरी-ख्वाब यहाँ, हर बार दिखाये
जाते हैं।
आगे से अरबी घोड़ी है, पीछे से लगती गैया है,
परदेशी दुधारू गैया के,
नखरे भी उठाये जाते
हैं।।
संकर नसलें-संकर फसलें, जब से आई हैं भारत में,
तब से जन-गण की आँखों में, आँसू ही पाये जाते
हैं।
मम्मी जी को तो अपना ही, दामाद बहुत ही भाता
है,
निर्धन बेटों की भूमि पर, वो महल बनाये जाते
हैं।
गांधी बाबा के खादर में, कब्जा है आज लुटेरों
का,
खद्दर की ओढ़ चदरिया को, धन-माल कमाये जाते
हैं।
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नजरों से गिराने की ख़ातिर, पलकों पे सजाये जाते हैं।
जवाब देंहटाएंमतलब के लिए सिंहासन पर, उल्लू भी बिठाये जाते हैं।।
हा-हा.. बहुत ही समसामयिक गजल है सर जी !
अब उत्तर प्रदेश को ही देख लो , पुत्तर प्रदेश बनाकर रख दिया! पूरा खानदान ही समाजवाद के नाम पर सत्ता में है !
हटाएंढका हुआ भाषण से ही, ये लोकतन्त्र का चेहरा है
जवाब देंहटाएंलोगों को सुनहरी-ख्वाब यहाँ, हर बार दिखाये जाते हैं।
नजरों से गिराने की ख़ातिर, पलकों पे सजाये जाते हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों बाद कव्वाली पढने को मिली वो भी कटाक्षी खंजर भरी बहुत बहुत बधाई ,वाह वाह आदरणीय शास्त्री जी मैं तो गा कर भी देख रही हूँ खूब लय में आ रही है
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक और सशक्त.
जवाब देंहटाएंरामराम.
गांधी बाबा के खादर में, कब्जा है आज लुटेरों का,
जवाब देंहटाएंखद्दर की ओढ़ चदरिया को, धन-माल कमाये जाते हैं।
...बहुत सटीक प्रस्तुति ..
सर ये भी अंदाज देख लिया आपका..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
मेरी कोशिश होती है कि टीवी की दुनिया की असल तस्वीर आपके सामने रहे। मेरे ब्लाग TV स्टेशन पर जरूर पढिए।
MEDIA : अब तो हद हो गई !
http://tvstationlive.blogspot.in/2013/07/media.html#comment-form
वही हाल है -अँधे पीसें, कुत्ते खाय़ँ !
जवाब देंहटाएंवाह गुरु जी क्या निराला अंदाज प्रस्तुत किया है आपने
जवाब देंहटाएंगजब का कटाक्ष आपकी अपनी शैली में
साधुवाद
नजरों से गिराने की ख़ातिर, पलकों पे सजाये जाते हैं।
जवाब देंहटाएंमतलब के लिए सिंहासन पर, उल्लू भी बिठाये जाते हैं।।
संकर नसलें-संकर फसलें, जब से आई हैं भारत में,
तब से जन-गण की आँखों में, आँसू ही पाये जाते हैं।
मम्मी जी को तो अपना ही, दामाद बहुत ही भाता है,
निर्धन बेटों की भूमि पर, वो महल बनाये जाते हैं।
गांधी बाबा के खादर में, कब्जा है आज लुटेरों का,
खद्दर की ओढ़ चदरिया को, धन-माल कमाये जाते हैं।
हकीकत पर कटाक्ष करती हुई बहुत अच्छी कव्वाली...इसे सार्वजानिक मंच से सुनाया जाना चाहिए....