वफा और प्यार की बातें, किसे अच्छी नहीं लगतीं। तपन के बाद बरसातें, किसे अच्छी नहीं लगतीं। मिलन होता जहाँ बिछड़ी हुई, कुछ आत्माओं का, चमकती वो हसीं रातें, किसे अच्छी नहीं लगतीं।। गुलो-गुलशन की बरबादी, हमें अच्छी नहीं लगती। वतन की बढ़ती आबादी, हमें अच्छी नहीं लगती। जुल्म का सामना करने को, जिसको ढाल माना था- सितम करती वही खादी, हमें अच्छी नहीं लगती।। |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
शुक्रवार, 26 जुलाई 2013
"अच्छी नहीं लगतीं" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
कुहरे ने सूरज ढका , थर-थर काँपे देह। पर्वत पर हिमपात है , मैदानों पर मेह।१। -- कल तक छोटे वस्त्र थे , फैशन की थी होड़। लेक...
-
सपना जो पूरा हुआ! सपने तो व्यक्ति जीवनभर देखता है, कभी खुली आँखों से तो कभी बन्द आँखों से। साहित्य का विद्यार्थी होने के नाते...
सही कहा आपने.
जवाब देंहटाएंरामराम.
सटीक मुक्तक-
जवाब देंहटाएंसार्थक सन्देश-
आभार गुरु जी-
वाह एक दम सटीक बात
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएं'सपने देखती आँखें किसे अच्छी नहीं लगती...
हक़ीक़त में झुलसी वीरानियाँ... हमें अच्छी नहीं लगती...'
~सादर!!!
बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंवाह मयंक जी । बढ़िया मुक्तक हैं । आप तो हर विधा के उस्ताद लगते हैं । मेरी बधाई लें ।
जवाब देंहटाएंsahi .sundar prastuti .
जवाब देंहटाएंगुलो-गुलशन की बरबादी, हमें अच्छी नहीं लगती।
जवाब देंहटाएंवतन की बढ़ती आबादी, हमें अच्छी नहीं लगती।
जुल्म का सामना करने को, जिसको ढाल माना था-
सितम करती वही खादी, हमें अच्छी नहीं लगती।।
बहुत अच्छे !क्या बात !
सुन्दर पंक्तियाँ..
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया..सुन्दर पंक्तियाँ..
जवाब देंहटाएंवफा और प्यार की बातें, किसे अच्छी नहीं लगतीं।
जवाब देंहटाएंतपन के बाद बरसातें, किसे अच्छी नहीं लगतीं। .....
.....
जुल्म का सामना करने को, जिसको ढाल माना था-
सितम करती वही खादी, हमें अच्छी नहीं लगती।।
...
बहुत अच्छी/सच्ची पंक्तिया हैं, बधाई!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढिया।
जवाब देंहटाएंसुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंlatest post हमारे नेताजी
latest postअनुभूति : वर्षा ऋतु