सावन
की है छटा निराली
धरती
पर पसरी हरियाली
तन-मन
सबका मोह रही है
नभ
पर घटा घिरी है काली
मोर-मोरनी
ने कानन में
नृत्य
दिखाकर खुशी मना ली
सड़कों
पर काँवड़ियों की भी
घूम
रहीं टोली मतवाली
झूम-झूम
लहराते पौधे
धानों
पर छायीं हैं बाली
दाड़िम,
सेब-नाशपाती के,
चेहरे
पर छायी है लाली
लेकिन
ऐसे में विरहिन का
उर-मन्दिर
है खाली-खाली
प्रजातन्त्र
के लोभी भँवरे
उपवन
में खा रहे दलाली
कैसे निखरे "रूप" गुलों का
करते हैं मक्कारी माली
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शानदार रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत अच्छा रचना
जवाब देंहटाएंदेश की असल तस्वीर वो भी मौसम के इशारों में
बहुत सुंदर..
मुझे लगता है कि राजनीति से जुड़ी दो बातें आपको जाननी जरूरी है।
"आधा सच " ब्लाग पर BJP के लिए खतरा बन रहे आडवाणी !
http://aadhasachonline.blogspot.in/2013/07/bjp.html?showComment=1374596042756#c7527682429187200337
और हमारे दूसरे ब्लाग रोजनामचा पर बुरे फस गए बेचारे राहुल !
http://dailyreportsonline.blogspot.in/2013/07/blog-post.html
sawan k jhoolon ne mujhko bulaaya....
जवाब देंहटाएंप्रकृति की स्नेहिल छाया और हमारी मूढ़ता, दोनों पर सुन्दर संप्रेषण।
जवाब देंहटाएंबढ़िया सावन महिमा-
जवाब देंहटाएंआभार गुरुवर
बहुत सुंदर...महानगरीय जीवन में आपने सावन की छटा के दर्शन करा दिए:-))
जवाब देंहटाएंमनभावन सावन..
जवाब देंहटाएंबहुत कविता ..
जवाब देंहटाएंमोर को नाचता देख बहुत अच्छा लगा.. कल ही बच्चों के साथ भोपाल वन विहार गयी तो वहां सड़क से थोड़ी दूर मोर को नाचते पहली बार देखा .. १० मिनिट तक देखने के बाद बारिश आने से हम आगे निकलना पड़ा ..दूर होने से मोबाइल से फोटो ली लेकिन उसमें ठीक से नज़र नहीं आया ... इस दौरान घर में रखा कैमरा बार बार याद आया कि साथ में रख लेते तो सुन्दर याद कैद होती ......
वाह बहुत खूब ....सावन का आनंद आ गया
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