दो मुक्तक
(१)
जरा सी बात पर कोई, नहीं यूँ ही भड़कता है
जो जिन्दा हैं उन्हीं का तो, हमेशा दिल धड़कता है
पतिंगा चल पड़ा है, शम्मा पर कुरबान होने को
तनिक सा प्यार पाने को ही परवाना फड़कता है
(२)
फ़लक उल्फत से धरती को, हमेशा झाँकता रहता
मिलन के चाह में वो, रात में भी ताँकता रहता
मगर इन आसमानों को, नहीं मनमीत मिलता है
वो क़ातिब है किताबों में, हुनर को बाँचता रहता
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आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 14-11-2013 की चर्चा में दिया गया है
जवाब देंहटाएंकृपया चर्चा मंच पर पधार कर अपनी राय दें
धन्यवाद
खूबसूरत मुक्तक
जवाब देंहटाएं(ब्लॉग से दूरी के लिए क्षमा )
फ़लक उल्फत से धरती को, हमेशा झाँकता रहता
जवाब देंहटाएंमिलन के चाह में वो, रात में भी ताँकता रहता
मगर इन आसमानों को, नहीं मनमीत मिलता है
वो क़ातिब है किताबों में, हुनर को बाँचता रहता
फ़लक उल्फत से धरती को, हमेशा झाँकता रहता
मिलन के चाह में वो, रात में भी ताँकता रहता
मगर इन आसमानों को, नहीं मनमीत मिलता है
वो क़ातिब है किताबों में, हुनर को बाँचता रहता
(peep बोले तो ताक -झाँक करना ,ताकना -झांकना )
बढ़िया मुक्तक।
बहुत सुंदर...
जवाब देंहटाएंआ. शास्त्री जी , मुक्तक और रुबाइयाँ में अंतर बताने की कृपा करें !आभार
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट लोकतंत्र -स्तम्भ
बहुत सुन्दर .
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : पुनर्जन्म की अवधारणा : कितनी सही
खुबसूरत अभिवयक्ति..
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक व सुंदर.
जवाब देंहटाएंरामराम.
वाह बहुत सुंदर !
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