खौफ
नहीं कानून का, इन्सानों को आज।
हैवानों
की होड़ अब, करने लगा समाज।।
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लोकतन्त्र
में न्याय से, होती अक्सर भूल।
कौआ
मोती निगलता, हंस फाँकता धूल।।
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धनबल-तनबल-राजबल,
जन-गण रहे पछाड़।
बच
जाते मक्कार भी, लेकर शक की आड़।।
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मोटी
रकम डकार कर, करते बहस वकील।
गद्दारों
के पक्ष में, देते तर्क दलील।।
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सरे
आम होने लगा, नारी का अपमान।
पोथी-पत्री
में निहित, अबला का सम्मान।।
--
नर-नारी
की खान को, अबला रहे पुकार।
बेटों
को तो लाड़ हैं, बेटी को दुत्कार।।
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माँ-बहनों
के रूप की, लगती बोली आज।
अन्धा
ही कानून है, अन्धा ही है राज।।
|
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शुक्रवार, 29 नवंबर 2013
"दोहे-अन्धा कानून" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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bahot sunder dohe guru g
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर उत्कृष्ट सटीक दोहे !!!
जवाब देंहटाएं=====================
नई पोस्ट-: चुनाव आया...
वाह बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंsacchi bat sabhi doho se sahmat hoon .....
जवाब देंहटाएंye andhaaaaa kanoooon hai
जवाब देंहटाएंसब समाज की ही देन है...जो हम अपने चारों ओर देखते हैं...सुन्दर गीत और विचार...
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