दुख की बदली में घिरा, तेजपाल का तेज।
रास न आयी तरुण को, सोमा जी की सेज।।
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अब जगजाहिर हो गया, तेजपाल का कृत्य।
पुलिस जाँच-पड़ताल से, साबित होगा सत्य।।
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पत्रकारिता की मिली, मिट्टी में अब शाख।
मचा तहलका देश में, आग हो गयी राख।।
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शोषण करता देह का, इज्जतदार समाज।
सम्पादक खुद लूटते, महिलाओं की लाज।।
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धर्म वहाँ कैसे टिके, जहाँ घृणित हों काम।
काम-पिपासा बढ़ रही, देख “रूप” का घाम।।
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शनिवार, 23 नवंबर 2013
"तेजपाल का तेज" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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मिटटी करे पलीद अब, यही तरुण का तेज |
जवाब देंहटाएंगलत ख्याल वो पाल के, छोड़े अपनी मेज |
छोड़े अपनी मेज, झुकाई कीर्ति पताका |
करता नहीं गुरेज, बना फिरता है आका |
करती महिला केस, हुई गुम सिट्टी पिट्टी |
सोमा ज्यादा तेज, दोष पर डाले मिटटी ||
बहुत सुन्दर सर जी ,छद्म पत्रकारिता नें आज तेज को कहाँ से कहाँ ला पटका ,शर्म की बात है
जवाब देंहटाएंआप की ये सुंदर रचना आने वाले सौमवार यानी 25/11/2013 को नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है... आप भी इस हलचल में सादर आमंत्रित है...
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ।
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बहुत ही सटीक.
जवाब देंहटाएंरामराम.
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जवाब देंहटाएंशोषण करता देह का, इज्जतदार समाज।
सम्पादक खुद लूटते, महिलाओं की लाज।।
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धर्म वहाँ कैसे टिके, जहाँ घृणित हों काम।
काम-पिपासा बढ़ रही, देख “रूप” का घाम।।
शोषण करता देह का, इज्जतदार समाज।
सम्पादक खुद लूटते, महिलाओं की लाज।।
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धर्म वहाँ कैसे टिके, जहाँ घृणित हों काम।
काम-पिपासा बढ़ रही, देख “रूप” का घाम।।
पेज थ्री की लूट है लूट सके तो लूट ,
बाहर बेहद शोर भाई अंदर से है मूट।
बेहतरीन दोहे ………सच्चाई को उकेरते हुये।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर.छद्म पत्रकारिता की कलई खोलती रचना.
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर प्रासंगिक स्ट्रिंग आपरेशन सी धारदार रचना। शुक्रिया ज़नाब की सद्य टिप्पणियों का।
steek prastuti...
जवाब देंहटाएं