♥ नौका में है छेद कहीं ♥
देश-वेश और जाति-धर्म का ,
मन में कुछ भी भेद नहीं।
भोग लिया जीवन सारा,
अब जाने का भी खेद नहीं।।
सरदी की ठण्डक में ठिठुरा, गर्मी की लू झेली हैं,
बरसातों की रिम-झिम से, जी भरकर होली खेली है,
चप्पू तो हैं सही-सलामत, नौका में है छेद कहीं।
भोग लिया जीवन सारा,
अब जाने का भी खेद नहीं।।
सुख में कभी नही मुस्काया, दुख में कभी नही रोया,
जीवन की नाजुक घड़ियों में, धीरज कभी नही खोया,
दुनिया भर की पोथी पढ़ लीं, नजर न आया वेद कहीं।
भोग लिया जीवन सारा,
अब जाने का भी खेद नहीं।।
आशा और निराशा ही तो, जीवन की परिभाषा है,
कभी गरल है, कभी सरल है, बुझती नहीं पिपासा है,
गलियाँ आज लहू से रंजित, दिखा कहीं श्रम-स्वेद नहीं।
भोग लिया जीवन सारा,
अब जाने का भी खेद नहीं।।
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मन के भावों का सुन्दर प्रगटीकरण-
जवाब देंहटाएंआभार गुरुवर
सुंदर अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्रीजी
जवाब देंहटाएंआपने तो जीने की कला बता दी।
विरल जीवन दृष्टि एवँ दर्शन की बेहतरीन अभिव्यक्ति है यह रचना ! आपको बहुत-बहुत साधुवाद शास्त्री जी !
जवाब देंहटाएंsundar prastuti ..
जवाब देंहटाएंबहुत मनभावन जीवन से जुडी गीत !
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट मन्दिर या विकास ?
नई पोस्ट लोकतंत्र -स्तम्भ
आप की ये सुंदर रचना आने वाले सौमवार यानी 18/11/2013 को नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है... आप भी इस हलचल में सादर आमंत्रित है...
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ।
उत्तरार्ध का सच है
जवाब देंहटाएंदेश-वेश और जाति-धर्म का ,
जवाब देंहटाएंमन में कुछ भी भेद नहीं।
भोग लिया जीवन सारा,
अब जाने का भी खेद नहीं।।
सरदी की ठण्डक में ठिठुरा, गर्मी की लू झेली हैं,
बरसातों की रिम-झिम से, जी भरकर होली खेली है,
चप्पू तो हैं सही-सलामत, नौका में है छेद कहीं।
भोग लिया जीवन सारा,
अब जाने का भी खेद नहीं..
बहुत सुन्दर सन्देश परक संतोष देती संतोष को भी प्रस्तुति।
सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंअच्छा बुरा सब देखा सब भोगा...
जवाब देंहटाएंभोग लिया जीवन सारा,
अब जाने का भी खेद नहीं।।
दार्शनिकता का बोध कराती रचना, बधाई.