राधाकृष्णन
के हुए, सारे सपने चूर।
जगत
गुरू के लक्ष्य से, आज हुए हम दूर।।
सद्गुरु
अपने देश में, सोये चादर तान।
नगर-गाँव
में चल रहीं, शिक्षा की दूकान।।
बाँट
रहे अनपढ़ जहाँ, गली-गली में ज्ञान।
ज्ञान-सूर्य
का गगन में, हुआ आज अवसान।।
भारत
के परिवेश में, लगे बदनुमा दाग।
पश्चिम
के अनुकरण का, करना होगा त्याग।।
शालाओं
में आजकल, पसरा है अज्ञान।
कैसे
होगा फिर यहाँ, शिक्षा का उत्थान।।
गुरू-शिष्य
मिलकर करें, अगर प्रतिज्ञा आज।
वेदों
के वित्रान से, बदलें देश-समाज।
आओ शिक्षक
दिवस पर, बदलें हम परिवेश।
जीवन
में धारण करें, गुरुओं के उपदेश।।
शिष्यों
अब अज्ञान को, करो नहीं स्वीकार्य।
माणिक-मोती
ज्ञान के, तब देंगे आचार्य।।
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बुधवार, 4 सितंबर 2019
दोहे "अध्यापक दिवस" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
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कुहरे ने सूरज ढका , थर-थर काँपे देह। पर्वत पर हिमपात है , मैदानों पर मेह।१। -- कल तक छोटे वस्त्र थे , फैशन की थी होड़। लेक...
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सपना जो पूरा हुआ! सपने तो व्यक्ति जीवनभर देखता है, कभी खुली आँखों से तो कभी बन्द आँखों से। साहित्य का विद्यार्थी होने के नाते...
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 5.9.19 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3449 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 5 सितंबर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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