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श्राद्ध गये तो आ गये, माता के नवरात्र।
लीला का मंचन करें, रामायण के पात्र।।
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सबको देते प्रेरणा, माता के नवरूप।
निष्ठा से पूजन करो, लेकर दीपक-धूप।।
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सच्चे मन से कीजिए, माता का गुण-गान।
माता तो सन्तान का, रखती पल-पल ध्यान।।
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अभ्यागत को देखकर, होना नहीं उदास।
करो प्रेम से आरती, रक्खो व्रत-उपवास।।
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शुद्ध बनाने के लिए, आते हैं नवरात्र।
ज्ञानी बनने के लिए, पढ़ो नियम से शास्त्र।।
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सारे सपनों को करें, माता जी साकार।
कर्मों से ही तो बने, जीवन का आधार।।
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ज्ञानदायिनी शारदे, भर दो खाली ताल।
वीणा की झंकार से, कर दो मुझे निहाल।।
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रविवार, 29 सितंबर 2019
दोहे "रक्खो व्रत-उपवास" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (30-09-2019) को " गुजरता वक्त " (चर्चा अंक- 3474) पर भी होगी।
वाह ... नव रात्री और व्रत त्यौहार के सुन्दर दोहे ...
जवाब देंहटाएंअच्छा संकलन दोहों का ...
वाह सुंदर भाव लिए दोहे।
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