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सिसक रहा है आज वतन में, खुशियों का चौबारा।
छल-फरेब की कारा में, जकड़ा है भाईचारा।।
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पगडण्डी पर चोर-लुटेरे, चौराहों पर डाकू,
रिश्तों की झाड़ी में पसरे, भाई बने लड़ाकू,
सम्बन्धों में गरल भरा है, प्यार हुआ आवारा।
छल-फरेब की कारा में, जकड़ा है भाईचारा।।
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मन में कोरा स्वार्थ समाया, मुख पर मीठी बातें,
ममता-समता झूठी-झूठी, झूठी सब सौगातें,
अपने ही हो गये बिराने, देगा कौन सहारा?
छल-फरेब की कारा में, जकड़ा है भाईचारा।।
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नहीं तमन्ना है दुलार की, नहीं प्यार में राहत,
सन्तानों को केवल है अब, अधिकारों की चाहत,
पर आने पर पंछी ने घर से कर लिया किनारा।
छल-फरेब की कारा में, जकड़ा है भाईचारा।।
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शनिवार, 14 मार्च 2020
गीत "भाईचारा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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नहीं तमन्ना है दुलार की, नहीं प्यार में राहत,
जवाब देंहटाएंसन्तानों को केवल है अब, अधिकारों की चाहत,
पर आने पर पंछी ने घर से कर लिया किनारा।
छल-फरेब की कारा में, जकड़ा है भाईचारा।।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(१५-०३-२०२०) को शब्द-सृजन-१२ "भाईचारा"(चर्चा अंक -३६४१) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
**
अनीता सैनी
सिसक रहा है आज वतन में, खुशियों का चौबारा।
जवाब देंहटाएंछल-फरेब की कारा में, जकड़ा है भाईचारा।।
हृदयस्पर्शी रचना ,सादर नमन सर
सत्य कहा सार्थक रचना
जवाब देंहटाएं