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कोरोना से मच रहा, जग में
हाहाकार।
एतिहात सबसे बड़ा, ऐसे में
उपचार।।
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सेनीटाइज से करो, स्वच्छ
सभी घर-बार।
बन्द कीजिए कुछ दिवस, अपने
कारोबार।।
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नहीं आ सका है अभी, कोरोना
का तोड़।
अपने घर में ही रहो, भीड़-भाड़
को छोड़।।
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खाना अब तो छोड़ दो, मछली गोश्त-कबाब।
घर से निकलो जब कभी, मुँह पर
ढको नकाब।।
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कोरोना से देश में, पसरा है
अवसाद।
भूल जाइए आज सब, धरने और
फसाद।।
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जन-जीवन से खेलते, अभिमानी
मुल्लाह।
हुआ बाग शाहीन है, कितना
लापरवाह।।
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घोर संक्रमित काल में, मत कर टाल-मटोल।
बार-बार मिलता नहीं, ये जीवन
अनमोल।
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शनिवार, 21 मार्च 2020
दोहे "घोर संक्रमित काल में, मुँह पर ढको नकाब" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
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कुहरे ने सूरज ढका , थर-थर काँपे देह। पर्वत पर हिमपात है , मैदानों पर मेह।१। -- कल तक छोटे वस्त्र थे , फैशन की थी होड़। लेक...
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सपना जो पूरा हुआ! सपने तो व्यक्ति जीवनभर देखता है, कभी खुली आँखों से तो कभी बन्द आँखों से। साहित्य का विद्यार्थी होने के नाते...
घोर संक्रमित काल में, मत कर टाल-मटोल।
जवाब देंहटाएंबार-बार मिलता नहीं, ये जीवन अनमोल।
बहुत सुन्दर और सार्थक सृजन सर ।
आपके दोहे मनमोह लेते हैं और सोचने पर विवश भी करते हैं शास्त्री जी , बहुत खूबसूरती से आपने समसामयिक टिप्पणियां की हैं
जवाब देंहटाएंसामायिक विषय पर ज्ञान और निर्देश देते सार्थक दोहे आदरणीय।
जवाब देंहटाएंआज की प्रस्तुति भूमिका से आखिर तक सामायिक और सार्थक।
जवाब देंहटाएंआज की परिस्थितियों से निपटने में सभी को साथ मिल कदम उठाने होंगे।
सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
मेरी रचना को शामिल करने केलिए हृदय तल से आभार।
सेनीटाइज से करो, स्वच्छ सभी घर-बार।
जवाब देंहटाएंबन्द कीजिए कुछ दिवस, अपने कारोबार।।
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नहीं आ सका है अभी, कोरोना का तोड़।
अपने घर में ही रहो, भीड़-भाड़ को छोड़।
वाह ! वाह ! गुरु जी |