कोरोना को
देख कर, बना रहे जो बात।
वो ही देश-समाज
को, पहुँचाते आघात।।
अच्छे
कामों का जहाँ, होने लगे विरोध।
आता देश
समाज को, ऐसे दल पर क्रोध।।
मुखिया जिस घर में नहीं, होता है दमदार।
समझो उस परिवार का, निश्चित बण्टाधार।।
मुखिया ने
मझधार में, छोड़ी जब पतवार।
तब से ही
वो समर में, झेल रहा है हार।।
देशभक्ति
के मत करो, रंग आज बदरंग।
जनहित के
कानून को, कभी न करना भंग।।
अपने
स्वारथ के लिए, करो न ओछे काम।
रात हमेशा
भोर का, लाती है पैगाम।।
करो बाग
शाहीन में, धरना अब तो बन्द।
अपने ही घर
में रहो, होकर सब सानन्द।।
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सोमवार, 23 मार्च 2020
दोहे "जनहित के कानून को, कभी न करना भंग" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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''कोरोना को देख कर, बना रहे जो बात। वो ही देश-समाज को, पहुँचाते आघात।।''
जवाब देंहटाएंऐसे पूर्वाग्रही, अहमी लोगों को सबसे पहले शास्ति मिलनी चाहिए
अपने स्वारथ के लिए, करो न ओछे काम।
जवाब देंहटाएंरात हमेशा भोर का, लाती है पैगाम।।
बहुत सुन्दर और सार्थक संदेश आदरणीय .
समसामयिक दोहे अच्छे लगे।
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (24 -3-2020 ) को " तब तुम लापरवाह नहीं थे " (चर्चा अंक -3650) पर भी होगी,
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
बहुत ही सुंदर दोहे आदरणीय सर
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