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लिए अजूबे साथ में, कुदरत
की करतूत।
आलू धरती में पलें, डाली पर
शहतूत।।
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धुँधला सा नभ हो गया, बरसा नभ
से नीर।
बदला मौसम तो हुआ, मनवा
बहुत अधीर।।
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उपवन में मिलने लगा, भँवरों को मकरन्द।
कुदरत की शीतल हवा, देती है
आनन्द।।
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लीची बौरायी हुई, ललचाते
हैं आम।
खरबूजा-तरबूज की, शोभा है
अभिराम।।
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अभी पहाड़ों पर खिले, सुन्दर-सुन्दर
फूल।
काफल और बुराँस का, शरबत है
अनुकूल।।
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कानन में खिलते सुमन, बाँट रहे उपहार।
होली के सामान से, सजा हुआ बाजार।।
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हँसते-खिलते चमन में, करना मत कुहराम।
लज्जित हो इंसानियत, करो न ऐसे काम।।
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सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार(18-02-2020 ) को " करना मत कुहराम " (चर्चाअंक -3629) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
अति मनभावन सृजन आ0
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह शानदार सृजन।
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