मनमोहक सबको लगें, झालर-बन्दनवार। जगमग करती रौशनी, सजे हुए बाजार।। -- काजू मन ललचा रहे, महँगे हैं बादाम। लेकिन श्रमिक-किसान की, नहीं जेब में दाम।। -- धनवानों के है लिए, दीपों का त्यौहार। जुआ खेलते शान से, जीत रहे या हार।। -- बाजारों में धान का, गिरा हुआ है भाव। धरती के भगवान के, घर में बहुत अभाव।। -- जो दुनिया को पालता, बदतर उसका हाल। औने-पौने दाम में, उसका बिकता माल।। -- चाहे अपने देश में, कोई हो सरदार। नहीं किसानों का बना, अब तक पैरोकार।। -- जितने जनसेवक हुए, निकले सब मक्कार। करते हैं मत के लिए, भाषण लच्छेदार।। -- उनकी है दीपावली, उनके सब त्योहार। लेकिन जनता झेलती, महँगाई की मार।। -- |
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जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१४-११-२०२०) को 'दीपों का त्यौहार'(चर्चा अंक- ३८८५) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंदीपावली की आपको एवं आपके पूरे परिवार को हार्दिक शुभकामनाएं।
दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाओं के संग वन्दन
जवाब देंहटाएंसटीक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंचाहे अपने देश में, कोई हो सरदार।
जवाब देंहटाएंनहीं किसानों का बना, अब तक पैरोकार।।
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जितने जनसेवक हुए, निकले सब मक्कार।
करते हैं मत के लिए, भाषण लच्छेदार।।
आदरणीय,
एकदम यथार्थ स्थिति का चित्रण किया है आपने अपने दोहों के माध्यम से। साधुवाद 🙏🌟🙏
दीपावली पर हार्दिक शुभकामनाएं 🌺🍁🌺
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
नमस्ते
जवाब देंहटाएंआपको दीपावली सपरिवार शुभ और मंगलमय हो।
वाह।
जवाब देंहटाएंशुभ दीपावली।🌻