मित्रों! आज एक अतुकान्त रचना देखिए! सूर, कबीर, तुलसी, के गीत, |
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रविवार, 1 नवंबर 2020
अतुकान्त "अतुकान्त गीत और कुगीत" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
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कुहरे ने सूरज ढका , थर-थर काँपे देह। पर्वत पर हिमपात है , मैदानों पर मेह।१। -- कल तक छोटे वस्त्र थे , फैशन की थी होड़। लेक...
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सपना जो पूरा हुआ! सपने तो व्यक्ति जीवनभर देखता है, कभी खुली आँखों से तो कभी बन्द आँखों से। साहित्य का विद्यार्थी होने के नाते...
जवाब देंहटाएंजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
02/11/2020 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
वाह ! तीखा व्यंग्य भी और बहुपयोगी सीख भी। सादर प्रणाम।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया।
जवाब देंहटाएंपरिपूर्ण थी
जवाब देंहटाएंउनकी लेखनी
मर्यादाओं से,
मगर
आज तो लोगों को
सरोकार है
विविधताओं से।
लो हो गया काम,
पुरानों को नमन
और नयों को प्रणाम
क्या बात
सादर
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 2 नवंबर 2020) को 'लड़कियाँ स्पेस में जा रही हैं' (चर्चा अंक- 3873 ) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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#रवीन्द्र_सिंह_यादव
वन्दन.. सुन्दर लेखन..
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन ।
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