बढ़ता प्रदूषण, गाँव से पलायन शहरों का आकर्षण। जंगली जन्तु कहाँ जायें? कंकरीटों के जंगल में क्या खायें? मजबूरी में वे भी बस्तियों में घुस आये! -- क्या हाथी, क्या शेर? क्या चीतल, क्या वानर? त्रस्त हैं, सभी जानवर। खोज रहे हैं सब अपना आहार, हो रहे हैं नर अपनी भूलों का शिकार। अभी भी समय है, लगाओ पेड़, उगाओ वन, हो सके तो बचा लो, पर्यावरण!
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सोमवार, 2 नवंबर 2020
अकविता "बचा लो पर्यावरण" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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बहुत सुंदर। आज के समय में पर्यावरण मुख्य मुद्दा होना चाहिए। यह सुरक्षित है तो हम सुरक्षित है और आने वाले पीढ़ियों का कल सुरक्षित होगा। बाकी पेड़ लगाओ देश दुनिया बचाओ।
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार 3-11-2020 ) को "बचा लो पर्यावरण" (चर्चा अंक- 3874 ) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
हरियाली बिन जीवन नहीं,
जवाब देंहटाएंपुष्प बिना नहीं रंग
वन उपवन बचाने हेतु
चलो सृष्टि के नियम के संग। मानव को अब यह बात समझ लेनी चाहिए कि वन है तो जल है,जल है तो जीवन है। जीवन बचाने के लिए पर्यावरण में संतुलन बनाए रखना भी बेहद जरूरी है। बहुत सुंदर और सार्थक रचना आदरणीय।
जवाब देंहटाएंअभी भी समय है,
लगाओ पेड़,
उगाओ वन,
हो सके तो
बचा लो, पर्यावरण!
सार्थक संदेश देती इस कविता में निहित जनकल्याण की भावना श्लाघनीय है।
सादर नमन आदरणीय शास्त्री जी 🙏
शुभकामनाओं सहित,
- डॉ. वर्षा सिंह