देखिए मेरी भी एक गीतनुमा बन्दिश- "कुहरा पसरा आज चमन में" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') -- सुख का सूरज नहीं गगन में। कुहरा पसरा आज चमन में।। -- पाला पड़ता, शीत बरसता, सर्दी में है बदन ठिठुरता, तन ढकने को वस्त्र न पूरे, निर्धनता में जीवन मरता, पर्वत पर हिमपात हो रहा, पौधे मुरझाये कानन में। कुहरा पसरा आज चमन में।। -- आपाधापी और वितण्डा, बिना गैस के चूल्हा ठण्डा, गइया-जंगल नजर न आते, पायें कहाँ से लकड़ी कण्डा, लोकतन्त्र की आजादी तो, कब से बन्धक राजभवन में। कुहरा पसरा आज चमन में।। -- जोड़-तोड़ षडयन्त्र यहाँ है? गांधीजी का मन्त्र कहाँ है? जिसके लिए शहादत दी थी. वो जनता का तन्त्र कहाँ है? कब्ज़ा है अब दानवता का, मानवता के इस आँगन में। कुहरा पसरा आज चमन में।। -- विदुरनीति का हुआ सफाया, दुरानीति ने पाँव जमाया, आदर्शों को धता बताकर, देश लूटकर सबने खाया, बरगद-पीपल सूख गये हैं, खर-पतवार उगी उपवन में। कुहरा पसरा आज चमन में।। -- |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
सोमवार, 14 दिसंबर 2020
गीत "कुहरा पसरा आज चमन में" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि &qu...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
लोकतंत्र ही बंधक है ।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब।
नई पोस्ट-समानता
वाह
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (15-12-20) को "कुहरा पसरा आज चमन में" (चर्चा अंक 3916) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
कामिनी सिन्हा
प्रभावशाली रचना, हमेशा की तरह।
जवाब देंहटाएंविदुरनीति का हुआ सफाया,
जवाब देंहटाएंदुरानीति ने पाँव जमाया,
आदर्शों को धता बताकर,
देश लूटकर सबने खाया,
बरगद-पीपल सूख गये हैं,
खर-पतवार उगी उपवन में।
कुहरा पसरा आज चमन में।। बहुत ही सुंदर और सारगर्भित रचना..।
जवाब देंहटाएंवन्दन
लोकतन्त्र की आजादी तो,
कब से बन्धक राजभवन में।
–जनता की खुशी/मर्जी
बहुत खूब आदरणीय सर
जवाब देंहटाएंप्रणाम शास्त्री जी, एकदम सटीक रचना आज के माहौल को प्रतिबिंंबित करती हुई ...जोड़-तोड़ षडयन्त्र यहाँ है?
जवाब देंहटाएंगांधीजी का मन्त्र कहाँ है?
जिसके लिए शहादत दी थी.
वो जनता का तन्त्र कहाँ है?...बहुत खूब
सुन्दर सृजन,
जवाब देंहटाएं