-- मैदानों में कुहरा छाया। सितम बहुत सरदी ने ढाया।। सूरज को बादल ने घेरा, शीतलता ने डाला डेरा, ठिठुर रही है सबकी काया। सितम बहुत सरदी ने ढाया।। कलियों पर मौसम के पहरे, बहुत निराश हो रहे भँवरे, गुंजन उनको रास न आया। सितम बहुत सरदी ने ढाया।। -- सरसों के सब बिरुए रोते, गेहूँ अपना धीरज खोते है, हरियाली का हुआ सफाया। सितम बहुत सरदी ने ढाया।। -- बया नीड़ से झाँक रही है, इधर-उधर को ताँक रही है, शीतलता ने हाड़ कँपाया। सितम बहुत सरदी ने ढाया।। बूढ़े-बच्चे काँप रहे हैं, सभी आग को ताप रहे हैं, हिम पर्वशिखरों पर छाया। सितम बहुत सरदी ने ढाया।। -- |
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बुधवार, 16 दिसंबर 2020
गीत " ठिठुर रही है सबकी काया" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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बूढ़े-बच्चे काँप रहे हैं,
जवाब देंहटाएंसभी आग को ताप रहे हैं,
हिम पर्वशिखरों पर छाया।
सितम बहुत सरदी ने ढाया।।
सुन्दर गीत.....सच में सर्दी ने बड़ा सितम ढाया हुआ है....
बहुत ही सुन्दर जय हो
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 17.12.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
बहुत बढ़िया सर
जवाब देंहटाएंबूढ़े-बच्चे काँप रहे हैं,
जवाब देंहटाएंसभी आग को ताप रहे हैं,
हिम पर्वशिखरों पर छाया।
सितम बहुत सरदी ने ढाया।।
आदरणीय, बिलकुल यही दशा यहां मेरे शहर सागर में भी है। कड़ाके की सर्दी पड़ रही है।
बहुत अच्छा गीत है।
साधुवाद
सरसों के सब बिरुए रोते,
जवाब देंहटाएंगेहूँ अपना धीरज खोते है,
हरियाली का हुआ सफाया।
सितम बहुत सरदी ने ढाया।।
बेहतरीन गीत आदरणीय।
वाह!बहुत ही सुंदर सर।
जवाब देंहटाएंसादर
सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएं