-- गीत-गजल दोहे लिखूँ, लिखूँ बाल साहित्य। माता मेरे सृजन में, भर देना लालित्य।। -- गौमाता भूखी मरे,
श्वान खाय मधुपर्क। समझो ऐसे देश का, बेड़ा बिल्कुल गर्क।। चोकर-चारा घास के, आसमान पर दाम। गाय-भैंस को पालना, नहीं सरल है काम।। काम करो दिन में सदा,
रातों को विश्राम। संघर्षों से जीत लो, जीवन का संग्राम।। नदियाँ-सूरज-चन्द्रमा,
देते ये पैगाम। नित्य-नियम से कीजिए, अपने सारे काम।। नहीं मिलेगी हाट में,
इन्सानियत-तमीज। बाँध लीजिए कण्ठ में, कर्मों का ताबीज।। सबके लिए खुले हुए, स्वर्ग-नर्क के द्वार। कर्मयोनि मिलती नहीं,
जग में बारम्बार।। जगतनियन्ता का करो,
सच्चे मन से ध्यान। बिना वन्दना के नहीं,
मिलता है वरदान।। |
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शनिवार, 9 अप्रैल 2022
दोहे "गाय-भैंस को पालना, नहीं सरल है काम" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बेहतरीन
जवाब देंहटाएंबांध लीजिए कंठ में
जवाब देंहटाएंकर्मों का ताबीज....
यह सूत्र बहुत काम आएगा!
अष्टमी का प्रणाम ।
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (10-4-22) को "शुभ सुमंगल वितान दे..." (चर्चा अंक-4396) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
गौमाता भूखी मरे, श्वान खाय मधुपर्क।
जवाब देंहटाएंसमझो ऐसे देश का, बेड़ा बिल्कुल गर्क।।
वेहतरीन गुरुदेव
सांच को आंच नहीं, वर्तमान को आईना दिखाती दोहावली
कलम को वंदन गुरुदेव
वाह!बहुत बढ़िया सर 👌
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर दोहे...
जवाब देंहटाएं