जब गर्मी का मौसम आता, सूरज तन-मन को झुलसाता। तन से टप-टप बहे पसीना, जीना दूभर होता जाता। ऐसे मौसम में पेड़ों पर, फल छा जाते हैं रंग-रंगीले। उमस मिटाते हैं तन-मन की, खाने में हैं बहुत रसीले। ककड़ी-खीरा खरबूजा है, प्यास बुझाता तरबूजा है। जामुन पाचन करने वाली, लीची मीठे रस का कूजा। आड़ू और खुमानी भी तो, सबके ही मन को भाते हैं। आलूचा और काफल भी तो, हमें बहुत ही ललचाते हैं। कुसुम दहकते हैं बुराँश पर, लगता मोहक यह नज़ारा। इन फूलों के रस का शर्बत, शीतल करता बदन हमारा। आँगन और बगीचों में कुछ, फल वाले बिरुए उपजाओ। सुख से रहना अगर चाहते, पेड़ लगाओ-धरा बचाओ। |
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गुरुवार, 21 अप्रैल 2022
बालकविता "ककड़ी-खीरा खरबूजा है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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अच्छा ब्लॉग,अच्छी और सार्थक चर्चा
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(२२-०४ -२०२२ ) को
'चुप्पियाँ बढ़ती जा रही हैं'(चर्चा अंक-४४०८) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आदरणीय, नमस्कार👏! बहुत सुंदर मौसम के अनुकूल रचना! ये पंक्तियां बहुत अच्छे लगीं-
जवाब देंहटाएंकुसुम दहकते हैं बुराँश पर,
लगता मोहक यह नज़ारा।
इन फूलों के रस का शर्बत,
शीतल करता बदन हमारा।
--ब्रजेंद्रनाथ
सुख से रहना अगर चाहते,
जवाब देंहटाएंपेड़ लगाओ-धरा बचाओ।
बहुत सुंदर विचार,सादर नमन सर
वाह !
जवाब देंहटाएंमनोरंजक और शिक्षाप्रद बाल-गीत !