प्रातःस्मरणीय मेरी पूज्या माता जी आज से ठीक 7 वर्ष पहले आज ही के दिन पंचतत्व में विलीन हो गयी थीं। सूना घर-आँगन पड़ा, सूना ही है द्वार। माँ के बिन सूना हुआ, मेरा सब संसार।१। -- नहीं भुलाए भूलती, माता तेरी याद। अब होगा किससे भला, माता सा सम्वाद।२। -- माँ ममता का “रूप” है, पिता सबल आधार। मात-पिता सन्तान को, करते प्यार अपार।३। -- बातें माता-पिता की, सह लेना चुपचाप। मात-पिता को कभी भी, मत देना सन्ताप।४। -- एक साल पहले गये, पूज्य पिता परलोक। अब माता भी चल बसी, छाया घर में शोक।५। -- दोनों के आशीष से, वंचित हूँ मैं आज। तरस रहा माँ-बाप की, सुनने को आवाज़।६। -- जीवनभर मिलता नहीं, मात-पिता का साथ। होना पड़ता सभी को, कभी न कभी अनाथ।७। |
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गुरुवार, 14 अप्रैल 2022
दोहे "तरस रहा माँ-बाप की, सुनने को आवाज़" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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"दोनों के आशीष से, वंचित हूँ मैं आज। तरस रहा माँ-बाप की, सुनने को आवाज़"
जवाब देंहटाएंमाँ-बाप की याद ता-उम्र बनी रहती है !
भावभीनी श्रद्धांजलि
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(१५-०४ -२०२२ ) को
'तुम्हें छू कर, गीतों का अंकुर फिर उगाना है'(चर्चा अंक -४४०१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
विनम्र श्रद्धांजलि
जवाब देंहटाएंमां-बाप की कमी कोई नहीं पूरी कर सकता है
जवाब देंहटाएं, भावभीनी श्रद्धांजलि एवं नमन 🙏
नमन 🙏
जवाब देंहटाएंसादर नमन
जवाब देंहटाएं