समझदार होती अगर, मुख में घिरी जबान। करते बत्तीस दाँत क्यों, रखवाली दरबान।। -- अगर लगाई जीभ पर, मन ने नहीं लगाम। उलटी-ओछी बात से, मच जाता कुहराम।। -- रसना तो रस के लिए, कर देती मजबूर। वाणी के ही घाव का, बन जाता नासूर।। -- जिसने जग में कर लिया, वाणी पर अधिकार। कर लेंगे उसको सभी, मन से अंगीकार।। -- बित्ते भर की जीभ से, अपने बनते गैर। बिना मोल बिन भाव के, हो जाता है बैर।। -- कोमल है जब जीभ तो, बोलो कोमल बोल। सम्बन्धों के खेल में, वाणी है अनमोल।। -- रसना में जिनके नहीं, रस का हो सम्बन्ध। कुसुम काग़ज़ी हों अगर, कैसे आये गन्ध।। |
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शनिवार, 16 अप्रैल 2022
दोहे "वाणी है अनमोल" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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