करें विश्वास अब कैसे, सियासत के फकीरों पर उड़ाते मौज़ जी भरकर, हमारे ही जखीरों पर रँगे गीदड़ अमानत में ख़यानत कर रहे हैं अब लगे हों खून के धब्बे, जहाँ के कुछ वज़ीरों पर किये तैनात रखवाले, हमीं ने बिल्लियाँ-बिल्ले समन्दर कर रहे दोहन, मगर बनकर जजीरों पर जहाँ कानून हो अन्धा, वहाँ इंसाफ कैसे हो अदालत में टिके हैं फैसले केवल नज़ीरों पर पहन खादी को बगुलों ने, दिखाया “रूप” है अपना सितम ढाया है ख़ाकी ने, हमेशा ही कबीरों पर |
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रविवार, 5 जून 2011
"करें विश्वास अब कैसे?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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परिवर्तन का शुभारम्भ हो गया है...
जवाब देंहटाएंजहाँ कानून हो अन्धा, वहाँ इंसाफ कैसे हो
जवाब देंहटाएंअदालत में टिके हैं फैसले केवल नज़ीरों पर
सही बात कही है सर!
सादर
किये तैनात रखवाले, हमीं ने बिल्लियाँ-बिल्ले
जवाब देंहटाएंसमन्दर कर रहे दोहन, मगर बनकर जजीरों पर!
Well said !
पहन खादी को बगुलों ने, दिखाया “रूप” है अपना
जवाब देंहटाएंसितम ढाया है ख़ाकी ने, हमेशा ही कबीरों पर
इन्हें हमने बनाया,हमने ही इनको पाला
क्या करे जो छीन लेते है अपना निवाला
सामयिक धारदार रचना अभिवादन
अब तो खादी खाद का काम करती है, तभी तो पहनने वाले को हरा-भरा, खुशहाल करती है।
जवाब देंहटाएंजहाँ कानून हो अन्धा, वहाँ इंसाफ कैसे हो
जवाब देंहटाएंअदालत में टिके हैं फैसले केवल नज़ीरों पर
पहन खादी को बगुलों ने, दिखाया “रूप” है अपना
सितम ढाया है ख़ाकी ने, हमेशा ही कबीरों पr aaj ki istithi ko batati hui saarthak rachanaa.badhaai sweekaren.aabhaar
समसामयिक अच्छी रचना ... जनता तो हर तरह से ठगी जाती है
जवाब देंहटाएंपहन खादी को बगुलों ने, दिखाया “रूप” है अपना
जवाब देंहटाएंसितम ढाया है ख़ाकी ने, हमेशा ही कबीरों पर
....बहुत समसामयिक रचना...कब तक ये आवाज़ को दबा पायेंगे...जनता अब जाग चुकी है..आभार
समसामयिक रचना ... आभार !
जवाब देंहटाएंयूँ तो हर शेर वर्तमान को बखूबी चित्रित कर रहा है मगर,
जवाब देंहटाएंपहन खादी को बगुलों ने, दिखाया “रूप” है अपना
सितम ढाया है ख़ाकी ने, हमेशा ही कबीरों पर
मक्ते में मिसरा सानी मुझे बहुत पसंद आया ,शास्त्री जी.
पूर्णतया समसामयिक .
जवाब देंहटाएंआपसे ऐसी ही कविता की आशा थी, आपने पूरी की कहने के पहले ही.
धन्यवाद.
जनता अब जाग चुकी है..परिवर्तन का शुभारम्भ हो गया है...
जवाब देंहटाएंक्या कहें दादा मन ही खराब है जिन पर भरोसा था वे ही खराब हैं उसूलों पर टिकते तो ये हाल न होता आज बूढ़ा विकलांग और बच्चा बेहाल न होता
जवाब देंहटाएंपहन खादी को बगुलों ने, दिखाया “रूप” है अपना
जवाब देंहटाएंसितम ढाया है ख़ाकी ने, हमेशा ही कबीरों पर
एकदम ठीक....
laajabaab shashtri ji. Afsos ki yah desh kaa dubhaagya hai.
जवाब देंहटाएंसही बात कही है ! वर्तमान का यथार्थ है आपकी रचना में...
जवाब देंहटाएंसही बात कही है ! वर्तमान का यथार्थ है आपकी रचना में...
जवाब देंहटाएंआज के सन्दर्भ में बेहद महत्वपूर्ण रचना...सत्याग्रह को जिस तरह कुचला गया...इसे पूरे देश ने देखा...भूरे अंग्रेजों क जाने का ऐलान हो गया है...
जवाब देंहटाएंsateek tippri......
जवाब देंहटाएंलाजवाब!
जवाब देंहटाएंकल की प्रतिक्रिया में इतनी अच्छी ग़ज़ल, एक-एक शे’र सीधे दिल में उतर गए।
सटीक समय पर सटीक रचना |
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएँ!
बहुत समसामयिक रचना...कब तक ये आवाज़ को दबा पायेंगे..
जवाब देंहटाएंयह टाला जा सकता था।
जवाब देंहटाएंसमसामयिक रचना। बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने! बिल्कुल सही बात का ज़िक्र किया है!
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 07- 06 - 2011
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
साप्ताहिक काव्य मंच --- चर्चामंच
जहाँ कानून हो अन्धा, वहाँ इंसाफ कैसे हो
जवाब देंहटाएंअदालत में टिके हैं फैसले केवल नज़ीरों पर
पहन खादी को बगुलों ने, दिखाया “रूप” है अपना
सितम ढाया है ख़ाकी ने, हमेशा ही कबीरों पर 1
shandar rachna
रक्षा करना जिनका काम , उन पर अब भरोसा कैसे हो ..
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता !
शब्दश: सहमत हूँ .......सादर !
जवाब देंहटाएंसमसामयिक रचना हालात का सटीक चित्रण करती है।
जवाब देंहटाएंसमसामयिक रचना हालात का सटीक चित्रण करती है।
जवाब देंहटाएंजहाँ कानून हो अन्धा, वहाँ इंसाफ कैसे होअदालत में टिके हैं फैसले केवल नज़ीरों पर
जवाब देंहटाएंbilkul saty kaha apne . bahut sunder aur saty kaha apne...
guru ji
जवाब देंहटाएंbahut hee sashakt jhakjhor dene wali rachna
पहन खादी को बगुलों ने, दिखाया “रूप” है अपना
जवाब देंहटाएंसितम ढाया है ख़ाकी ने, हमेशा ही कबीरों पर ...
सच कहा है ... पर बिल्ली कब तक खैर मनाएगी ...
आपकी बात से अक्षरश: सहमत हूं .. बेहद सटीक एवं सार्थक प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंhaalaton ko byan karti sunder gazal
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar gazal.
जवाब देंहटाएंab kuchh privartan to hona bhi chaahiye
कानून और बल द्वारा आम जनता को त्रस्त किया जाएगा तो रक्षा के लिए कौन से हथियार प्रयुक्त होंगे?
जवाब देंहटाएंपहन खादी को बगुलों ने, दिखाया “रूप” है अपना
जवाब देंहटाएंसितम ढाया है ख़ाकी ने, हमेशा ही कबीरों पर
...
हम असंख्य जानो के ह्रदय में पल रहे पीर को अत्यंत प्रभावशाली अभिव्यक्ति दी है आपने....
आभार इस अद्वितीय रचना के लिए...
जहां क़ानून अंधा हो ,वहां इन्साफ कैसे हो ,
जवाब देंहटाएंअदालत में टिके हैं फैसले ,केवल नजीरों पर ।
पहन खादी को बगुलों ने ,दिखाया रूप है अपना ,
सितम ढाया है ,खाकी ने हमेशा ही कबीरों पर ।
डॉ रूप चंद शाष्त्री मयंक जी ."आज के हालात पे "हम सभी की आवाज़ बन गई है यह ग़ज़ल .भाव विरेचन हुआ है ,तनाव कम हुआ है यह ग़ज़ल पढ़कर .शुक्रिया आपका .
आपकी यह रचना कवि की चैतन्यता का उत्कृष्ट उदहारण है.
जवाब देंहटाएंकल 21/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
बहुत खूब लिखा है |
जवाब देंहटाएंआशा
उत्कृष्ट रचना....
जवाब देंहटाएंसादर...
आज की हकीकत बयां करती हुई रचना ..बहत खूब
जवाब देंहटाएंबेहद सटीक एवं सार्थक प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंरँगे गीदड़ अमानत में ख़यानत कर रहे हैं अब
जवाब देंहटाएंलगे हों खून के धब्बे, जहाँ के कुछ वज़ीरों पर
बहुत खूबसूरत रचना |
bahut hi satik avam sarthak prastuti....
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