मित्रों! कुछ दिने पहले मैंने यह रचना लिखी थी मगर इसको लिखकर भूल गया था। आज जब ड्राफ्ट में देखा तो इस रचना का ध्यान आया। इसलिए इसे आज प्रकाशित कर रहा हूँ! ग्रस्त बहुत हूँ, घिर-घिर आये तूफानों से। त्रस्त बहुत हूँ, बिना बुलाए मेहमानों से।। |
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बुधवार, 8 जून 2011
"बिना बुलाए मेहमानों से.." (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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सरिताओं की उलटी बहती हैं धाराएँ,
जवाब देंहटाएंसागर में अब कैसे, सलिला जल को लाएँ,
रुष्ट बहुत हूँ, सजे-सजाए अरमानों से।
त्रस्त बहुत हूँ, बिना बुलाए मेहमानों से।।
बेहतरीन है सर!
सादर
बहुत सुन्दर ग़ज़ल....
जवाब देंहटाएंbahut badhiya shastri ji.
जवाब देंहटाएंभगवान् ना करें यह मेहमान किसी के भी घर जाएँ !
जवाब देंहटाएंग्रस्त बहुत हूँ, घिर-घिर आये तूफानों से।
जवाब देंहटाएंत्रस्त बहुत हूँ, बिना बुलाए मेहमानों से।।
बहुत सुन्दर ग़ज़ल शास्त्री जी ।
बचा न कुछ भी, जितना किया हुआ था संचित,
जवाब देंहटाएंक्षणभर में कर दिया, सभी से सब कुछ वंचित,
असन्तुष्ट हूँ बहुत, कुदरती फरमानों से।
त्रस्त बहुत हूँ, बिना बुलाए मेहमानों से।bahut sarthak gajal.badhaai sweekaren.
हम भी त्रस्त हैं, ऐसे ही मेहमानों से।
जवाब देंहटाएंबचा न कुछ भी, जितना किया हुआ था संचित,
जवाब देंहटाएंक्षणभर में कर दिया, सभी से सब कुछ वंचित,
असन्तुष्ट हूँ बहुत, कुदरती फरमानों से।
त्रस्त बहुत हूँ, बिना बुलाए मेहमानों से।।
Marvelous creation Shastri ji.
.
सरिताओं की उलटी बहती हैं धाराएँ,
जवाब देंहटाएंसागर में अब कैसे, सलिला जल को लाएँ,
रुष्ट बहुत हूँ, सजे-सजाए अरमानों से।
त्रस्त बहुत हूँ, बिना बुलाए मेहमानों से।।
बहुत ही सुंदर....
marmsparshi gazal.
जवाब देंहटाएंकुदरती मेहमानों से हमेशा खतरा बना रहता है।
जवाब देंहटाएंसुस्त बहुत हूँ, नष्ट हुए निज सामानों से।
जवाब देंहटाएंत्रस्त बहुत हूँ, बिना बुलाए मेहमानों से।।
बहुत सही कहा है आपने....सभी परेशान है ...बिन बुलाये मेहमानों से
waah ..bahut sundar...
जवाब देंहटाएंसरिताओं की उलटी बहती हैं धाराएँ,
जवाब देंहटाएंसागर में अब कैसे, सलिला जल को लाएँ,
रुष्ट बहुत हूँ, सजे-सजाए अरमानों से।
त्रस्त बहुत हूँ, बिना बुलाए मेहमानों से।।
सुंदर ...सभी के मन की बात कही आपने....
वो भूली दास्ताँ ...लो फिर याद आ गयी ...
जवाब देंहटाएंअच्छा हुआ शास्त्री जी ! एक सुंदर रचना से मुलाकात हो गयी |
शुभकामनाएँ |
सरिताओं की उलटी बहती हैं धाराएँ,
जवाब देंहटाएंसागर में अब कैसे, सलिला जल को लाएँ,
रुष्ट बहुत हूँ, सजे-सजाए अरमानों से।
त्रस्त बहुत हूँ, बिना बुलाए मेहमानों से।।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...
आपकी पारखी नजर और अथाह शब्द कोष.. क्या बात है...
जवाब देंहटाएंसभी टिप्पणीदाताओं का आभार!
जवाब देंहटाएंमगर यह गीत है ग़ज़ल नहीं है!!
सरिताओं की उलटी बहती हैं धाराएँ,
जवाब देंहटाएंसागर में अब कैसे, सलिला जल को लाएँ,
रुष्ट बहुत हूँ, सजे-सजाए अरमानों से।
त्रस्त बहुत हूँ, बिना बुलाए मेहमानों से।।
बहुत सुन्दर और शानदार ग़ज़ल!
सरिताओं की उलटी बहती हैं धाराएँ,
जवाब देंहटाएंसागर में अब कैसे, सलिला जल को लाएँ,
बहुत सुन्दर
बहुत सुंदर लिखा है आपने दादा
जवाब देंहटाएंपूरी पोस्ट जबर्दस्त है शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंchitron ne japan ki yaad taaza kar dee!
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंपहली से लेकर आखरी लाइन तक में दर्द है ! कहते हैं की सारे मास्टरपीस हमेशा दर्द से ही उपजते हैं .
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !हमेशा की तरह शिखर पर अश -आर आपके .पूछ लीजिये -अतिथि तुम कब जाओगे ?
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