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इस समय हालात बेहद खराब हैं.
जवाब देंहटाएंek nahi do char nahi, lakho wikat samasyayen hain,
जवाब देंहटाएंshashan chhup baitha parde ke peeche, dikhti bas chhayayen hain...
sunder rachna....
vicharbeey...
जवाब देंहटाएंकिसी भी तरह हो, स्थितियाँ सुधरें।
जवाब देंहटाएंकहाँ गया वो हँसता आँगन,
जवाब देंहटाएंकहाँ गया वो खिलता उपवन,
कहाँ खो गया मधुर तराना,
सहमा सा बचपन होता है।
वर्तमान परिस्थितियों को दर्शाती विचारणीय रचना... आभार
इस समय इतने सारे समस्याओं से हमारा देश घिरा हुआ है जिसका आपने बहुत ही सुन्दरता से वर्णन किया है चित्रों के साथ!
जवाब देंहटाएंवाकई हालात पर चिंतित हूं हर घटना को मूक देखते जन मानस का आक्रोश जिस दिन फ़ूटेगा लोकतंत्र की चूलें खिसक जायेगी ।
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (13-6-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
आज के हालत पर सटीक रचना ... हर शब्द जैसे गूंज रहा हो //
जवाब देंहटाएंकैसे मस्ती-मौज करें सब,
जवाब देंहटाएंक्या इसमें स्नान करें अब,
बरस रहा है लहू गगन से,
बौना अपनापन होता है।
....आज के हालात का बहुत सटीक चित्रण..बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी रचना..आभार
वर्तमान परिस्थितियों को दर्शाती विचारणीय रचना| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंबिलकुल सामयिक और विचारणीय रचना.
जवाब देंहटाएंसादर
गम्भीर वैचारिक सोच से उद्भूत एक सुंदर कविता !
जवाब देंहटाएंyahi ho raha hai !
जवाब देंहटाएंचिंतनीय
जवाब देंहटाएंचिंता का विषय है...
जवाब देंहटाएंइस वक़्त कि समस्याओं को बहुत सही रूप देकर उभरा है आपने ....विचार करने योग्य आज के तथ्य
जवाब देंहटाएंsahi abhivyakti.
जवाब देंहटाएंबरस रहा है लहू गगन से ,बौना अपना पन होता है ,
जवाब देंहटाएंईद दिवाली होली क्रिसमस ,में भी मैला मन होता है ।
अनशन पर शाशन का डंडा ,सत्या- ग्रह दमन होता है .
जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है इन प्रासंगिक अशारों पर .
कहाँ गया वो हँसता आँगन,
जवाब देंहटाएंकहाँ गया वो खिलता उपवन,
कहाँ खो गया मधुर तराना,
सहमा सा बचपन होता है।
विचारणीय- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
माटी का कण -कण रोता है ....इस देश में आम जन भी रोता ही है ...
जवाब देंहटाएंआमजन की पीड़ा को स्वर दिए आपने ...
आभार !
....माटी का कण -कण रोता है ......./
जवाब देंहटाएंहमें यही कहना है ,
[कोई मसीहा आये इस वतन को बचाए --खुदा मान लेंगे ]
भाव- प्रवर रचना .शुक्रिया जी /
bahut marmik....babu ji...
जवाब देंहटाएंहकीक़त बयान करती उत्कृष्टतम रचना... ढेरों बधाईयाँ सर!
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना , भाव पूर्ण व उद्देश्य निहित....
जवाब देंहटाएं---हाँ कलापक्ष के अनुसार ....तथ्य.भ्रंश ...
जब-जब भी ऊपर को देखा,
छाया नभपर घन होता है।
----क्या ये सार्वकालिक स्थिति है....वर्षा.मेघ के चित्र की स्थिति सहित..नहीं ..