सिसक रहा है आज वतन में, खुशियों का चौबारा। छल-फरेब की कारा में, जकड़ा है भाईचारा।। पगडण्डी पर चोर-लुटेरे, चौराहों पर डाकू, रिश्तों की झाड़ी में पसरे, भाई बने लड़ाकू, सम्बन्धों में गरल भरा है, प्यार हुआ आवारा। छल-फरेब की कारा में, जकड़ा है भाईचारा।। मन में कोरा स्वार्थ समाया, मुख पर मीठी बातें, ममता-समता झूठी-झूठी, झूठी सब सौगातें, अपने ही हो गये बिराने, देगा कौन सहारा? छल-फरेब की कारा में, जकड़ा है भाईचारा।। नहीं तमन्ना है दुलार की, नहीं प्यार में राहत, सन्तानों को केवल है अब, अधिकारों की चाहत, पर आने पर पंछी ने घर से कर लिया किनारा। छल-फरेब की कारा में, जकड़ा है भाईचारा।। |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
मंगलवार, 21 जून 2011
"गीत- प्यार हुआ आवारा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि &qu...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
होगी ये सच्चाई
जवाब देंहटाएंपर कविता पसन्द नहीं आई
क्योंकि इसमें कहीं पर भी मैं नहीं.
क्या सच्चे लोगों की कोई गिनती नहीं !!
राजीव नन्दन द्विवेदी जी (अवध टाइम्स)
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार!
आप तो आफताब हैं!
आपकी रौशनी से ही यह मयंक भी प्रकाशित है!
धन्यवाद शास्त्री जी.
जवाब देंहटाएंऔर प्रति टिप्पणी नहीं करने वाले आप की यह प्रति टिप्पणी यह स्वतः प्रकट कर रही है कि आप अपने पाठकों व टिप्पणीकारों से कितना जुड़े रहते हैं.
आलोचना तो कर ही दी है पर सच्ची आलोचना तभी पूर्ण होगी जब मैं यह कहूँ कि अब यही समाज के एक बड़े वर्ग का सत्य है और यह वर्ग निरंतर दीर्घता की और ही अग्रसर है.
सत्योद्घाटित करती कविता.
सन्तानों को केवल है अब, अधिकारों की चाहत,
जवाब देंहटाएंकर्तव्य - पथ
बिसराता मनुष्य
अधिकार पर
हर्षाता युग
निकृष्ट जीवन
आत्मा अशुद्ध
भूलते यथार्थ
अनर्गलता पुष्ट
चेतो रे चश्मों
बहाओ प्रेम-नीर
देखने को हर्षित
देश है अधीर
सही है शास्त्री जी समस्याओं का वर्णन है, पर व्यावहारिक निदान भी दें जैसे कि, जातिप्रथा हटाने के लिये चाहिये कि लोग सरनेम उपनाम का प्रयोग छोड़ दें, धर्मनिरपेक्षता के पचड़े से बचने के लिये धर्म वैयक्ितक चीज होनी चाहिये मन्दिर, मस्िजद,चर्च की जगह सुलभ शौचालय, रैन बसेरे, धर्मशालाएं, अस्पताल जरूरी हैं इत्यादि इत्यादि।
जवाब देंहटाएंमौजूदा दौर की सच्चाई
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना।
जवाब देंहटाएंसत्य और सारी ... समाज का आइना है ये रचना ..
जवाब देंहटाएंRajey Sha राजे_शा ने कहा…
जवाब देंहटाएं@ मन्दिर, मस्िजद,चर्च की जगह सुलभ शौचालय, रैन बसेरे, धर्मशालाएं, अस्पताल जरूरी हैं इत्यादि इत्यादि।
sir jee unemployment badh jaayegi.
bahut bade rojgaar kendra hain ye.
kalpana kijiye jara---
karodon logoe ke bhukhe marne ki noubat aa jayegi
aur---
duniya me apradh bhi badh jaayenge vo alag. kamsekam lakhon dukaane hainchadhave ki phool mala ki
chandan agabatti ki.
नहीं तमन्ना है दुलार की, नहीं प्यार में राहत,
जवाब देंहटाएंसन्तानों को केवल है अब, अधिकारों की चाहत,
पर आने पर पंछी ने घर से कर लिया किनारा।
छल-फरेब की कारा में, जकड़ा है भाईचारा।।
आज की सच्चाई को खूबसूरती से उभारा है।
"pyaar huya aavaaraa .."naye ghar ki talash men ??achhi pakad hai apki shayad anubhav gahara hai sir ji sadhuwad
जवाब देंहटाएंनहीं तमन्ना है दुलार की, नहीं प्यार में राहत,
जवाब देंहटाएंसन्तानों को केवल है अब, अधिकारों की चाहत,
पर आने पर पंछी ने घर से कर लिया किनारा।
छल-फरेब की कारा में, जकड़ा है भाईचारा।।
.....बहुत मर्मस्पर्शी..हरेक पंक्ति अंतस को छू जाती है..आज के यथार्थ का बहुत सशक्त चित्रण..आभार
बहुत मर्मस्पर्शी ...
जवाब देंहटाएंगीत बहुत बढ़िया है.
जवाब देंहटाएंराजे शा साहब और रविकर जी की टिप्पणियां !
छल-फरेब की कारा में, जकड़ा है भाईचारा।।
जवाब देंहटाएंkhoobsurat
छल-फरेब की कारा में, जकड़ा है भाईचारा।।
जवाब देंहटाएंएकदम सच कहा है...
सच्ची रचना.
जवाब देंहटाएंक्या भाईचारा छल फरेब से कभी मुक्त हो पायेगा भाई जी ?भाई का मतलब तलाश कर रहा हूँ.उसकी मुक्ति का इंतजार कर रहा हूँ.
जवाब देंहटाएंअक्सर जब हम कोई सच्ची किताब या कोई सच्चा सिद्धान्त या कोई सच्ची रचना पढ़ या सुन रहे होते हैं तो हमें लगता है कि इसको तो हम पहले से ही जानते हैं, यह कोई नई बात नहीं है, शायद इसलिए कि वह हमारी ही अन्तरात्मा की आवाज़ होती है किन्तु परीक्षा की घड़ी आने पर सब बातें भूल जाती हैं और हम फ़ेल हो जाते हैं ज़िन्दगी के इम्तिहान में। इसी लिए उन बातों को पुन: पुन: कहने, पढ़ने और दुहराने की महती आश्यकता होती है। इस उद्देश्य को बख़ूबी पूर्ण करती हुई समाज के कड़वे सच का बयान करती आपकी यह रचना अत्यन्त ही उपयोगी है। बधाई स्वीकार करें।
जवाब देंहटाएं"पर आने पर पंछी ने घर से कर लिया किनारा" और" प्यार हुआ आवारा" बेहतरीन बिम्बात्मक प्रयोग पूरी एक घर घर की देश की कथा कहानी लिए हुए .इतने सशक्त और बहु -उत्पादल लेखन के लिए बधाई भी आभार भी आप ऐसे ही प्रेरणा सेतु बने रहें .दीर्घायु होवें .
जवाब देंहटाएंख़ूबसूरत रचना...बच्चों को उड़ने दीजिये...परिंदे भी बच्चों को छोड़ देते हैं...
जवाब देंहटाएंमन में कोरा स्वार्थ समाया, मुख पर मीठी बातें,
जवाब देंहटाएंममता-समता झूठी-झूठी, झूठी सब सौगातें,
अपने ही हो गये बिराने, देगा कौन सहारा?
छल-फरेब की कारा में, जकड़ा है भाईचारा।।
बिल्कुल सही कहा है आपने! सच्चाई को बड़े ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया है! शानदार रचना!
प्यार हृदय से बाहर आये,
जवाब देंहटाएंअपना जीवन व्यर्थ न जाये।
आज की स्थिति का सटीक वर्णन करती अच्छी रचना .
जवाब देंहटाएंमन में कोरा स्वार्थ समाया, मुख पर मीठी बातें,
जवाब देंहटाएंममता-समता झूठी-झूठी, झूठी सब सौगातें,
अपने ही हो गये बिराने, देगा कौन सहारा?
छल-फरेब की कारा में, जकड़ा है भाईचारा।।
Bitter truth !
sad indeed
.
"अब यही समाज के एक बड़े वर्ग का सत्य है और यह वर्ग निरंतर दीर्घता की और ही अग्रसर है" - सत्योद्घाटित करती कविता - बधाई शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंपगडण्डी पर चोर-लुटेरे, चौराहों पर डाकू,
जवाब देंहटाएंरिश्तों की झाड़ी में पसरे, भाई बने लड़ाकू,
सम्बन्धों में गरल भरा है, प्यार हुआ आवारा।
छल-फरेब की कारा में, जकड़ा है भाईचारा।।
such baat hai aaj ki duniya bus matlab ki hi reh gayi hai.