उनके आने से दिलकश नज़ारे हुए मिल गई जब नज़र तो इशारे हुए आँखों-आँखों में बातें सभी हो गईं हो गये उनके हम वो हमारे हुए रस्मों-दस्तूर की बेड़ियाँ तोड़कर अब तो उन्मुक्त पानी के धारे हुए सारी कलियों को खिलना मयस्सर नहीं सूख जातीं बहुत मन को मारे हुए कितने खुदगर्ज़ आये-मिले चल दिये मतलबी यार सारे के सारे हुए जो दिलों की हैं धड़कन को पहचानते बेसहारों के वो ही सहारे हुए “रूप”-रस का है लोभी जमाना बहुत चूस मकरन्द भँवरे किनारे हुए |
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सोमवार, 27 जून 2011
"चूस मकरन्द भँवरे किनारे हुए" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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वाह बहुत खूब रस के साथ अच्छा वर्णन किया है आपने
जवाब देंहटाएंरस्मों-दस्तूर की बेड़ियाँ तोड़कर
अब तो उन्मुक्त पानी के धारे हुए
बहुत खूब शास्त्री जी ||
जवाब देंहटाएंवो प्यारी हुई- ये प्यारे हुए |
दीवानी हुए - दिल हारे हुए |
रास्ता कट रहा है मजे से बहुत
एक-दूजे के पक्के सहारे हुए ||
bahut achjal gjalen likhten hain aap inko padhker hum prasansak aapki rachanaon ke hue,badhaai itani achchi gajal likhne ke liye.
जवाब देंहटाएंवाह शास्त्री जी! क्या ख़ूब रचना है...सच में 'चूस मकरन्द भंवरे किनारे हुए...'
जवाब देंहटाएंबहुत खूब लिखा है जनाब ...चूस मकरंद भंवरे किनारे हुए 'क्या बात है !
जवाब देंहटाएंजब बांध टूट जाता है तो किनारे उन्मुक्त हो ही जाते हैं...
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया....
aur ek din aapko na padhein....
जवाब देंहटाएंto lagta hai jaise bechaare huye!!
जब बांध टूट जाता है तो किनारे उन्मुक्त हो ही जाते हैं...बहुत ही बढ़िया....
जवाब देंहटाएंजो दिलों की हैं धड़कन को पहचानते
जवाब देंहटाएंbahut sundar bhav bhare hain shandar abhivyakti.badhai.
वाह! बहुत खूब!!!
जवाब देंहटाएंचूस मकरंद भँवरे किनारे हुए .....बहुत खूब ---याद आ गईं ये पंक्तियाँ -
जवाब देंहटाएंजब तक पैसा पास यार संग ही संग डोले ,
पैसा रहा न पास यार मुख से नहीं बोले .
स्वार्थ भरा है इस दुनिया में,
जवाब देंहटाएंकरे क्या, यही रहना है।
खुदगर्जी का दूसरा रूप है यह भौंरा।
जवाब देंहटाएंजो दिलों की हैं धड़कन को पहचानते
जवाब देंहटाएंबेसहारों के वो ही सहारे हुए
बहुत ख़ूबसूरत गज़ल...
रूप”-रस का है लोभी जमाना बहुत
जवाब देंहटाएंचूस मकरन्द भँवरे किनारे हुए
bahut khoob
वाह...वाह...
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया....
जवाब देंहटाएंजड़ को सींचा, बहुत मीठे जल से मगर
जवाब देंहटाएंफल " नयन - वृक्ष " के सारे खारे हुए.
jounk jaisi rachana ,hum bhi achhute nahin hai vyang bhi achha sadhuwad dr. saheb
जवाब देंहटाएंvery nice poem Shastri ji.
जवाब देंहटाएंIt has suggestive meaning in all fields of day-today life...........great
जो दिलों की हैं धड़कन को पहचानते
जवाब देंहटाएंबेसहारों के वो ही सहारे हुए...
ऐसे भी लोग बचे हुए हैं तो क्या हुआ जो ...
मतलबी यार सारे के सारे हुए!
आँखों-आँखों में बातें सभी हो गईं
जवाब देंहटाएंहो गये उनके हम वो हमारे हुए
सहजता क्र साथ कितने बड़े घाव दे दिए ,...... उम्दा सृजन सर ! शुक्रिया जी /
nice hai mayank daa
जवाब देंहटाएंजो दिलों की हैं धड़कन को पहचानते
बेसहारों के वो ही सहारे हुए
sab mushkilen mit gayi
jab kaana khevanhaare hue
marubhumi me bhi hariyaali aa jaaye
jab ham prabhu ke dwaare hue
heere moti ka ham kya karen
pee ka saath hame sanwaare hue
chiraag-e-dil jalti rahegi hamaari
kya hua jo khudgarz chaand-sitaare hue
diye banaane waale kumhaar se poocho
kitne gharon me ujiyaare hue
"roop" hai tera tab tak "neel"
jab tak tere karm pyaare hue
बहुत बढ़िया लिखा है ...
जवाब देंहटाएंआजकल की यही हवा है ...
अरे वाह! क्या रंग है!
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत गज़ल है... दाद कबूल करें.
जवाब देंहटाएंउनके आने से दिलकश नज़ारे हुए
जवाब देंहटाएंमिल गई जब नज़र तो इशारे हुए
आँखों-आँखों में बातें सभी हो गईं
हो गये उनके हम वो हमारे हुए
प्रेम रस से सराबोर सुन्दर रचना के लिये हार्दिक बधाई।
प्रतिभा के धनी है आप
जवाब देंहटाएंबहुत खूब .....आभार
वाह ... बहुत खूब कहा है आपने ।
जवाब देंहटाएंजो दिलों की हैं धड़कन को पहचानते
जवाब देंहटाएंबेसहारों के वो ही सहारे हुए....बहुत खूबसूरत गज़ल है..
.आभार...
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत खूब सर जी आपकी रचना पढ़ कर मन प्रसन्न हो जाता है...... भगवान् अपको सदैव सुखी रखे और आपकी ढेर सारी रचना हम सब को पढ़ने को मिले .... धन्यवाद् से जी
जवाब देंहटाएं