दो दिन की चैट दिनांक 14 जून, 20011 को सुरेश राजपूत की चैट आई! बातों-बातों में पता लगा कि वो पन्तनगर में रहते है। वो मेरी बातों में बहुत रुचि ले रहे थे तो मुझे भी लगा कि यह व्यक्ति जिज्ञासु है। मैंने इनसे कहा कि आप ब्लॉगिंग क्यों नहीं करते? सुरेश जी उत्तर दिया कि मैं तो ब्लॉगिंग का क-ख-ग-घ भी नहीं जानता हूँ। मैंने कहा कि आपका ब्लॉग बना दूँ। इन्होंने उत्तर दिया- हाँ बना दीजिए! मैंने इनसे आग्रह किया कि आप कुछ फोटो मुझको भेज दीजिए। इस पर सुरेश जी ने बहुत संकोच से कहा कि मेरे पास मेरी अकेले की को फोटो नहीं है। अब मैंने इनसे कहा कि आप कुछ ऐसी फोटो भेज दीजिए जिसमें आप भी हों तो इन्होंने मुझे 3 फोटों भेजी। तब मैंने इनके भेजे हुए चित्रों में से फोटोशॉप के प्रयोग से इनको एकल बना लिया और “अनुपमांश” के नाम से यह ब्लॉग बना कर इनको दे दिया। अब इस ब्लॉग पर पोस्ट लगाने का तरीका भी इनको समझाना था। मैंने इन्हें कुछ समझाया तो इनको अधिक समझ में नहीं आया। इस पर इन्होंने कहा कि मैं आपको गुरू मानता हूँ। आप मेरे ब्लॉग पर पहली पोस्ट लगाकर इसका लोकार्पण कर दीजिए। इनके आग्रह पर मैंने “अनुपमांश” पर पहली पोस्ट भी लगा दी। "अनुपमांश ब्लॉग का लोकार्पण" (सुरेश राजपूत)
सुरेश राजपूत जी से मुलाकात को तीन दिन पूरे भी नहीं हुए थे कि यह 18 जून को अपराह्न 4 बजे मेरे निवास पर आ गये। आते ही इन्होंने मुझे 5 किलो बनारसी आम भेंट किये। क्योंकि इन्हें चैटिंग में पता लग चुका था कि मुझे आम बहुत पसन्द हैं। दो घण्टा कम्प्यूटर पर बैठने के बाद हम लोग यहाँ से 7 किमी दूर चकरपुर के जंगल में स्थित शिवमन्दिर वनखण्डी महादेव के दर्शनों के लिए गए। वहाँ से जैसे ही लौटकर आये तो सरस पायस के सम्पादक रावेंद्रकुमार रवि जी भी आ गये और 9 बजे तक ब्लॉगिंग को लेकर काफी गप-शप हुई। अब हम दोनों अतिथिगृह में विश्राम के लिए चले गये लेकिन बातों में से बातें निकलतीं गईं और एक बजे के लगभग सोना हुआ। मुझे प्रतिदिन सुबह 5 बजे उठने की आदत है इसलिए मैं चुपके से उठा और 6-30 तक अपने दैनिक कार्य निबटाए। इसके बाद सुरेश जी भी उठे ब्रुश आदि करके कहने लगे कि मित्र आज पन्तनगर विश्वविद्यालय में कोई परीक्षा है इसलिए मुझे 9 बजे ड्यूटी पर हाजिर होना होगा। अब मैं उन लम्हों का जिक्र करने जा रहा हूँ। जिन्होंने मुझे भाव-विभोर कर दिया था। यदि सच पूछा जाए तो यह पूरी पोस्ट लिखने का सार निम्न पंक्तियों में ही छिपा हुआ है। सुरेश जी ने मुझे विश्वविद्यालय के मोनोग्राम वाली काली टी-शर्ट और पैण्ट-शर्ट का कपड़ा गुरू-दक्षिणा में दिया और मेरे चरण स्पर्श करके अपनी वैगन-आर की ड्राइविंग सीट पर बैठ गये। मैं भी ऐसे शिष्य को पाकर धन्य हो गया। |
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रविवार, 19 जून 2011
"नेट की दक्षिणा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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एक हम निर्मोही अभी तक अपने गुरुदेव के
जवाब देंहटाएंसाक्षात दर्शन भी ना कर सके ... और गुरु दक्षिणा तो दूर की बात है.
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विज्ञान पहेली -20 पर आपका स्वागत है.
बिन गुरू पार संसार नहि भाई
जवाब देंहटाएंहम भी गुरु ढूंढते ढूंढते खुद ही गुरु हो गए हैं। काश हमें भी कोई मिला होता। अब चाहे तो आप गुरु बनिए या फिर कोई शिष्य ही जुगाड़ दीजिएं। यह तो सब मजाक की बातें हैं लेकिन सच लिख रही हूँ कि आप वाकयी में बहुत परिश्रम करते हैं। बस कभी आम हमें भी खिला दीजिए।
जवाब देंहटाएंअनुपमाँश जी को नये ब्लाग के लिये बधाई और उसके गुरूदेव को भी। शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंguru ji app ney meri charcha kerekey mujhey or bhi jayaad bold ker diya mai to sirf app ka shisey hu yeh dekshira to kuch bhi nahi ,aklavya ney to app thumb daan ker diya tha to yeh to kuch bhai nahi hai.
जवाब देंहटाएंmei bhi app jasey guru ji lo pakaar dhany ho gaya hu .
जवाब देंहटाएंमा० शास्त्री जी का सानिध्य और कृपा
जवाब देंहटाएंईर्ष्या का सबब बन गई |
माननीया अजित गुप्ता जी से विनम्र निवेदन है कि
मुझे शिष्य के रूप में स्वीकार कर अनुगृहित करें ||
अनुपमाँश जी को नये ब्लाग के लिये बधाई और
अपने महागुरू का कोटि-कोटि चरण वंदन ||
गुरु होना और गुरु पाना दोनो सौभाग्य तथा गर्व का विषय है। आप दोनो को बधाई और शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंhum bhi apka dil sey badhi leythey hai. lots of thanks for me comment
जवाब देंहटाएंये तो भाग्य भाग्य की बात है बिन मांगे मोती मिले मांगे मिले ना भीख !
जवाब देंहटाएंमेरी हार्दिक शुभ कामनाएं आपके साथ हैं !
वाह क्या बात है. ब्लाग परिवार में विस्तार का शायद सही रास्ता भी यही है.
जवाब देंहटाएंअब आपके शिष्य से मुझे जलन हो रही है थोड़ी ! :-)
जवाब देंहटाएंआप तो मुझे अपनी बेटी मानते हैं ..मेरा ब्लॉग भी बना दीजिये न? :-) :-)
yeh to apna apna bhagay hai ish mai jaalan kaisee, kabhi kushi milti hai kabhi dukh
जवाब देंहटाएंaapke liye ye din hamesha yaadgaar rahe......
जवाब देंहटाएं@ suresh ji ,
जवाब देंहटाएंaap waakai bhaagyshaali hain..meri baat dil se na laagaayega..main to mast-maula hun.. :-)
aapka swaagat hai.
अनुपमाँश जी को नये ब्लाग के लिये बधाई और उसके गुरूदेव को भी। शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंADARJO DR.SAHEB "NET PAR DAKSHINA..."NA LEN TO ACHHA HAI .HAAAA...CHITR SAHIT PRSUTITY ACHHI RAHI THANX
जवाब देंहटाएंnahi ji aisa nahi hai kisi ko ek ladoo milta hai kisi ko faar paat. hum kbhi koi baat dil per nahi leytey hai or dil per dey tetey hai dhanyavaad
जवाब देंहटाएंlots of thanks.
जवाब देंहटाएंरविकर जी, अभी तो हम ही शिष्य है, मैंने लिखा भी है कि मजाक कर रही हूँ। लेकिन क्या आप भी ऐसे ही आम खिलाएंगे? बस मित्रता ही बनी रहे और साथ में स्नेह, वहीं बहुत है जीने के लिए।
जवाब देंहटाएंdekshina leyna or dena yeh to upper walley key ashirwaad sey hi sumbhav hai, sir app bhi kuch aisa kery ki baat baan gaey . if you dont mind.
जवाब देंहटाएंhardik shubhkamnayen
जवाब देंहटाएंयह सुन्दर सी परम्परायें पल्लवित हों।
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (20-6-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
जब शास्त्री जी जैसा गुरू हो तो चेले के तो मजे ही मजे हैं।
जवाब देंहटाएंसबकुछ दे दिया, फिर दक्षिणा का हक बनता ही है।
वाह शास्त्री जी, एक नगीना और जोड़ दिया हिन्दी के खजाने में.
जवाब देंहटाएंअनुमापंश जी को ब्लॉगर बनने की बहुत बढ़ायी ...
जवाब देंहटाएंगुरु रूप में आपको पाकर धन्य ही हुए होंगे ...
शुभकामनायें !
bahut hee sundar vivechna!
जवाब देंहटाएंअनुपांश के लिए शुरेश जी को हार्दिक बधाई और आपको ऐसा शिष्य मिला इसके लिए बधाई ..
जवाब देंहटाएंसुन्दर चित्रों के साथ बेहतरीन प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंanupaanse ko blogjagat mainshamil hone ke liye hardik badhaai.aajkal naa aese guru milate hain aur naa hi aese sisya .aap dono hi bahut lucky ho ,aap dono ka rishtaa hamesha aiesa
जवाब देंहटाएंhi banaa rahe bas yahi kamanaa hai.
मयंकजी बधाई सुरेशजी का ब्लाग परिवार में हार्दिक स्वागत है।
जवाब देंहटाएंगुरु बिन गत नहीं ... आपका प्रयास सराहनीय है ...
जवाब देंहटाएंगुरु होना और गुरु पाना दोनो सौभाग्य तथा गर्व का विषय है। आप दोनो को बधाई और शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंआदरणीया अजित जी गुप्ता
जवाब देंहटाएंनिवेदन पूरी गंभीरता के साथ किया है मैंने |
कभी दर्शन दें |
मेरे लगाये आम के पांच पेड़ों में फल आ रहे हैं |
अवश्य भेंट करूँगा आपके श्री चरणों में | |
http://dcgpthravikar.blogspot.com/
रविकर जी, अब आपसे परिचय हो गया है तो एक दिन निश्चित रूप से आपके शहर आना ही होगा। आप भी कभी उदयपुर आएं, आपका स्वागत है।
जवाब देंहटाएंबिन गुरु ज्ञान कहाँ से पाऊ ,जो कुछ आदिनांक सीखा है शिष्य भाव से ही सीखा है गुरु शिष्य बनने में बड़ा सुख है .शाष्त्री जी आप इतनी विद्याओं से एक साठ संयुक्त हैं हमारा भी शिष्य भाव ग्रहण करें .बहुत अच्छा ब्लॉग बनाया है आपने .और पोस्ट भी मार्मिक आदर से संसिक्त .बधाई गुरु -चेला दोनों को .
जवाब देंहटाएंजय हो गुरु चेले की
जवाब देंहटाएंअनुमापंश जी को ब्लॉगर बनने की बहुत बढ़ायी ...
जवाब देंहटाएं