मन के सूने से मन्दिर में, आशा का दीप जलाया क्यों? वीराने जैसे उपवन में, सुन्दर सा सुमन खिलाया क्यों? प्यार, प्यार है पाप नही है, इसका कोई माप नही है, यह तो है वरदान ईश का, यह कोई अभिशाप नही है, दो नयनों के प्यालों में, सागर सा नीर बहाया क्यों? वीराने जैसे उपवन में, सुन्दर सा सुमन खिलाया क्यों? मुस्काओ स्वर भर कर गाओ, नगमों को और तरानों को, गुंजायमान करदो फिर से, इन खाली पड़े ठिकानों को, शीशे से भी नाजुक दिल मे, ग़म का गुब्बार समाया क्यों? वीराने जैसे उपवन में, सुन्दर सा सुमन खिलाया क्यों? स्वप्न सलोने जो छाये हैं, उनको आज धरातल दे दो, पीत पड़े प्यारे पादप को, गंगा का निर्मल जल दे दो, रस्म-रिवाजों के कचरे से, यह घर-द्वार सजाया क्यों? वीराने जैसे उपवन में, सुन्दर सा सुमन खिलाया क्यों? |
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मंगलवार, 26 जून 2012
"आशा का दीप जलाया क्यों" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जब प्रकोष्ठ में अंधियारा, कर देता है मारी-मारा ।
जवाब देंहटाएंउद्दीपन कर प्रेम दीप का, फैलाते हैं सद-उजियारा ।
bahut sundar prastuti
जवाब देंहटाएंbahut achchi lagi.
जवाब देंहटाएंसुन्दर गीत....
जवाब देंहटाएंसादर.
रस्म-रिवाजों के कचरे से,यह घर-द्वार सजाया क्यों?
जवाब देंहटाएंवीराने जैसे उपवन मेंसुन्दर सा सुमन खिलाया क्यों?
बहुत ही सुंदर गीत,,,,
मुझे बहुत अच्छा लगा,,,,,बधाई
RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: आश्वासन,,,,,
"रस्म-रिवाजों के कचरे से, यह घर-द्वार सजाया क्यों?
जवाब देंहटाएंवीराने जैसे उपवन में, सुन्दर सा सुमन खिलाया क्यों?"
अति सुन्दर ... हमेशा की तरह...
बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंअंतिम दो पंक्तियों वाला संदेश अपना लिया जाये तो तमाम समस्याओं का निदान स्वतः हो जाये। समझने और पालन करने की आवश्यकता है।
जवाब देंहटाएंbahut accha geet hai..sadar badhayee ke sath
जवाब देंहटाएंप्यार, प्यार है पाप नही है, इसका कोई माप नही है,
जवाब देंहटाएंसार्थक सूत्र ..खूबसूरत गीत
सुंदर रचना ..!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंइस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
बहुत श्रेष्ठ रचना।
जवाब देंहटाएंbahut hee badhiyaa!
जवाब देंहटाएंएक आशा जो सदा ही साथ रहती..
जवाब देंहटाएंवाह ... बहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंरस्म-रिवाजों के कचरे से, यह घर-द्वार सजाया क्यों?
जवाब देंहटाएंआन्तरिक भावों के सहज प्रवाहमय
सुन्दर रचना....
स्वप्न सलोने जो छाये हैं, उनको आज धरातल दे दो,
जवाब देंहटाएंपीत पड़े प्यारे पादप को, गंगा का निर्मल जल दे दो,
रस्म-रिवाजों के कचरे से, यह घर-द्वार सजाया क्यों?
वीराने जैसे उपवन में, सुन्दर सा सुमन खिलाया क्यों?
क्या कहने हैं अभिव्यक्ति को पंख लग गये हैं अर्थ को नए सौपान और उड़ान मिली है .