एक साल में आते आम। सबके मन को भाते आम।। जब वर्षा से आँगन भरता, स्वाद बदलने को जी करता, तब पेड़ों पर आते आम। सबके मन को भाते आम।। चटनी और अचार बनाओ, पक जाने पर काटो-खाओ, आम सभी के होते आम। सबके मन को भाते आम।। कच्चा सबसे खट्टा होता, पक जाने पर मीठा होता, लंगड़ा वो कहलाते आम। सबके मन को भाते आम।। बम्बइया की शान निराली, खुशबू होती है मतवाली, अपनी ओर लुभाते आम। सबके मन को भाते आम।। |
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सोमवार, 11 जून 2012
"सबके मन को भाते आम" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सुन्दर ..
जवाब देंहटाएंमुह में पानी आ गया
:-)
वाह वाह बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंदसहरी, की खुशबू निराली
जवाब देंहटाएंआम्रपाली,की भाती लाली
किस्म किस्म के होते आम,
सबके मन को भाते आम,
सुंदर रचना,,,,,,
बहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंवाह, वाह!...मजा आ गया!
जवाब देंहटाएंवाह! वाह! बहुत सुन्दर.....
जवाब देंहटाएंसादर.
बम्बइया की शान निराली,
जवाब देंहटाएंखुशबू होती है मतवाली,
अपनी ओर लुभाते आम।
सबके मन को भाते आम।।
रचनात्मक भी कलात्मक भी .प्यारी गुडिया की प्यारी गुडिया रानी .शाबाश गुडिया रानी .
आम तो बस आम है..
जवाब देंहटाएंये आम कथा बड़ी प्यारी लगी
जवाब देंहटाएंचित्र देख बचपन याद आ गया !
जवाब देंहटाएंआभार आपका !
aam jaisee meethi rachna
जवाब देंहटाएं