दुर्गम पथरीला पथ है, आगे कोई सोपान नहीं। मैदानों से पर्वत पर, चढ़ना होता आसान नहीं।। रहते हैं आराध्य देव, उत्तुंग शैल के शिखरों में, कैसे दर्शन करूँ आपके शक्ति नहीं है पैरों में, चरणामृत मिल जाए मुझे, ऐसा मेरा शुभदान नहीं। मैदानों से पर्वत पर, चढ़ना होता आसान नहीं।। तुम हो जग के कर्ता-हर्ता, शिव-शम्भू कल्याण करो, उरमन्दिर में पार्वती के साथ, देव तुम चरण धरो, पूजा और वन्दना का, मुझ अज्ञानी को ज्ञान नहीं। मैदानों से पर्वत पर, चढ़ना होता आसान नहीं।। भोले-भण्डारी के दर से, कोई नहीं खाली जाता, जो धरता है ध्यान आपका, वो इच्छित फल को पाता, जिससे उपमा हो शिव की, ऐसा कोई उपमान नहीं। मैदानों से पर्वत पर, चढ़ना होता आसान नहीं।। |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
बुधवार, 20 जून 2012
"आगे कोई सोपान नहीं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि &qu...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
सुन्दर प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंआभार ||
शायद प्रिंटिंग दोष है -
भोले-भण्डारी के दर से, की नहीं खाली जाता,
हाँ जी प्रिंटिंग मिस्टेक ही थी। अब सुधार कर दिया है।
जवाब देंहटाएंइंगित कराने के लिए आपका आभार रविकर जी!
गुरुवर की होवे कृपा, मिले मार्ग-निर्देश |
जवाब देंहटाएंशंकर के दर्शन सुलभ, चढ़ने में क्या क्लेश ??
गुरुवर की होवे कृपा, मिले मार्ग-निर्देश |
जवाब देंहटाएंशंकर के दर्शन सुलभ, चढ़ने में क्या क्लेश ??
चढ़ने में क्या क्लेश, सीड़ियाँ चढ़ते जाएँ ।
जय जय जय गुरुदेव, खटाख़ट बढ़ते जाएँ ।
बुद्धू पंगु-गंवार, बड़ा भोला है रविकर ।
सर-सरिता गिरि-खोह, कहाँ बाधा हैं गुरुवर ।।
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंक्या कहने
वाह: बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंभोले-भण्डारी के दर से, कोई नहीं खाली जाता,
जवाब देंहटाएंजो धरता है ध्यान आपका, वो इच्छित फल को पाता,
जिससे उपमा हो शिव की, ऐसा कोई उपमान नहीं।
मैदानों से पर्वत पर, चढ़ना होता आसान नहीं।।
पंख लग गए हैं शिव स्तुति को . अच्छी प्रस्तुति .कृपया यहाँ भी पधारें -
बुधवार, 20 जून 2012
क्या गड़बड़ है साहब चीनी में
क्या गड़बड़ है साहब चीनी में
http://veerubhai1947.blogspot.in/
भोले बाबा अपनी राहें कठिन बनाये बैठे हैं।
जवाब देंहटाएंजिससे उपमा हो शिव की, ऐसा कोई उपमान नहीं।
जवाब देंहटाएंमैदानों से पर्वत पर, चढ़ना होता आसान नहीं।।
जय हो भोले भंडारी की,,,,,,
'मैदानों से पर्वत पर, चढ़ना होता आसान नहीं।।'
जवाब देंहटाएं- आसान कैसे हो - हाँसत-खेलत हरि मिलें तो हर कोइ लेय रिझाय!