जिन्हें पाला था नाज़ों से, वही आँखें दिखाते हैं। हमारे दिल में घुसकर वो, हमें नश्तर चुभाते हैं।। जिन्हें अँगुली पकड़ हमने, कभी चलना सिखाया था, जरा सा ज्ञान क्या सीखा, हमें पढ़ना सिखाते हैं। भँवर में थे फँसे जब वो, हमीं ने तो निकाला था, मगर अहसान के बदले, हमें चूना लगाते हैं। हमें अहसास होता है, बड़ी है मतलबी दुनिया, गधे को बाप भी अपना, समय पर वो बनाते हैं। नहीं है “रूप” से मतलब, नहीं है रंग की चिन्ता, अगर चांदी के जूते हो, तो सिर पर वो बिठाते हैं। |
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शनिवार, 30 जून 2012
"हमारे घर में रहते हैं, हमें चूना लगाते हैं" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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उफ़ शास्त्री जी आज तो हर घर का सत्य लिख दिया घर घर की कहानी है …………बहुत जबरदस्त्।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ...
जवाब देंहटाएंलाजबाब बात कही शास्त्री जी ! एकदम सत्य !
जवाब देंहटाएंSundar aur kai jaghon par fit hone wali rachna..behtareen
जवाब देंहटाएंवाह SIR कमाल - धमाल - बेमिसाल.
जवाब देंहटाएंनहीं है “रूप” से मतलब, नहीं है रंग की चिन्ता,
जवाब देंहटाएंअगर चांदी के जूते हो, तो सिर पर वो बिठाते हैं।
इस ज़माने की हकीकत तो यही है !
आज मतलबी दुनिया में कोई किसी यार नही,
जवाब देंहटाएंमतलब के है रिश्ते नाते करता कोई प्यार नही,
पद पैसा है पास तुम्हारे, सब पीछे पीछे आयेगें
अपना काम निकालने को,सब रिश्ते बन जायेगें,,,,,,
सटीक प्रस्तुति,,,,,,
भँवर में थे फँसे जब वो, हमीं ने तो निकाला था,
जवाब देंहटाएंमगर अहसान के बदले, हमें चूना लगाते हैं ..
बहुत खूब .. सच कों हूबहू लिखा है ... मज़ा आ गया हर शेवर पढ़ने के बाद ... नमस्कार शास्त्री जी ...
एकदम सटीक बात..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति....
:-)
सुन्दर प्रस्तुति आपकी, मनभावन उत्कृष्ट |
जवाब देंहटाएंस्वीकारो शुभकामना, अति-रुचिकर है पृष्ट |
अति-रुचिकर है पृष्ट, सृष्ट की रीत पुरानी |
कहें गधे को बाप, नहीं यह गलत बयानी |
पर पाए संताप, नकारे गधा अगरचे |
करे आर्त आलाप, बुद्धि वह नाहक खरचे ||
कमाल की दृष्टि और रेखांकन
जवाब देंहटाएंसार्थकता लिए हुए सटीक लेखन ...आभार
जवाब देंहटाएंक्या बात
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया
बात एकदम सही है आपकी
जवाब देंहटाएंजिन्हें अँगुली पकड़ हमने, कभी चलना सिखाया था,
जवाब देंहटाएंजरा सा ज्ञान क्या सीखा, हमें पढ़ना सिखाते हैं।
अरे साहब कैसा ज्ञान इनके पास तो पूरी सूचना भी नहीं होती .पुत्र भले सूचना वान मिले वधु पुत्र के पास तो वह भी नहीं होती ,होती है सिर्फ एक सनक ,सब चीज़ पे कब्जा ज़माने की
बेहूदे पन की हद तक .
सटीक प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंसपाट कटाक्ष..
जवाब देंहटाएंहँसा रहा है चित्र पर, रुला गये हैं भाव |
जवाब देंहटाएंकैसी अंधी दौड़ है , कैसा ये बदलाव ||
नये जमाने के नये चलन को बड़ी सरलता से कह गये.न जाने कब आँख खुलेगी ???????
बाँधी पट्टी आँख पर करने चला इलाज
बाप न मारी मेंढकी , बेटा तीरंदाज
बेटा तीरंदाज , गधे को बाप बनाता
रिश्ते-नाते भूल, जोड़ता धन से नाता
सतयुग उजड़ा चली,क्रूर कलियुग की आँधी
ये है अंधी दौड़ , सभी ने पट्टी बाँधी ||
आज तो सच्चाई के सागर में डुबो डुबो कर कलम चलाई है वाह बहुत सुन्दर प्रस्तुति अंतिम लाइन का तो कोई जबाब नहीं
जवाब देंहटाएंएकदम सटीक।
जवाब देंहटाएंसटीक ... घर घर की कहानी
जवाब देंहटाएंकही बातें सभी सच्ची, यही है हाल दुनिया का,
जवाब देंहटाएंजवां औलाद होकर आँख बापू को दिखाते हैं.
सादर.
तस्वीर के साथ गज़ब ढा रही है गज़ल.
जवाब देंहटाएंबहुत जबरदस्त .....
जवाब देंहटाएंहम ऐसी कुछ किताबें ,क़बिले ज़ब्ती समझते हैं ,
जवाब देंहटाएंकि जिनको पढ़ के बेटे बाप को खब्ती समझते हैं !