सूरज आग उगलता जाता। नभ में घन का पता न पाता।१। जन-जीवन है अकुलाया सा, कोमल पौधा मुर्झाया सा, सूखा सम्बन्धों का नाता। नभ में घन का पता न पाता।२। सूख रहे हैं बाँध सरोवर, धूप निगलती आज धरोहर, रूठ गया है आज विधाता। नभ में घन का पता न पाता।३। दादुर जल बिन बहुत उदासा, चिल्लाता है चातक प्यासा, थक कर चूर हुआ उद्गाता। नभ में घन का पता न पाता।४। बहता तन से बहुत पसीना, जिसने सारा सुख है छीना, गर्मी से तन-मन अकुलाता। नभ में घन का पता न पाता।५। खेतों में पड़ गयी दरारें, कब आयेंगी नेह फुहारें, “रूप” न ऐसा हमको भाता। नभ में घन का पता न पाता।६। |
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शुक्रवार, 1 जून 2012
“रूप” न ऐसा हमको भाता (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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गर्मी से त्रस्त-
जवाब देंहटाएंबढ़िया गीत ||
सकल जगत जल जल जला,
बदन-जल जला जाय |
जीव जंतु जंगल जकड,
जीवन दिया जलाय ||
सकल जगत जल जल जला,
जवाब देंहटाएंबदन-जल जला जाय |
जीव जंतु जंगल जकड,
जीवन दिया जलाय ||
्गर्मी से तो सभी का बुरा हाल है………सटीक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंगर्मी ने बेहाल कर दिया है ..अब तो बस बरसात का इंतज़ार है..
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
गर्मी को दर्शाती सुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंतपन और जलन की वर्षा हो रही है आसमान पर।
जवाब देंहटाएंसच में इस बार तो दून घाटी भी गर्मी से बेहाल है ,बहुत सार्थक कविता लिखी है बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति,सुंदर सटीक रचना,,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST ,,,, काव्यान्जलि ,,,, अकेलापन ,,,,
bahut sateek..
जवाब देंहटाएंसमयोचित बढ़िया रचना.
जवाब देंहटाएंसुन्दर गीत....
जवाब देंहटाएंसादर
mausam ke mizaz ko darshata sundar kavita ....abhar
जवाब देंहटाएंचिल्लाता है चातक प्यासा,
जवाब देंहटाएंबेहतरीन शब्द चयन राग और आस दोनों से संसिक्त करुणा उपजाता पर्यावरण प्रकृति प्रेम से संसिक्त गीत और सचेत कवि दृष्टि क्या कहने हैं इस गीत के, सौंदर्य देखते ही बनता है इस रूप गर्वित गद्य गीत का .
कृपया यहाँ भी पधारें -
साधन भी प्रस्तुत कर रहा है बाज़ार जीरो साइज़ हो जाने के .
गत साठ सालों में छ: इंच बढ़ गया है महिलाओं का कटि प्रदेश (waistline),कमर का घेरा
http://veerubhai1947.blogspot.in/
लीवर डेमेज की वजह बन रही है पैरासीटामोल (acetaminophen)की ओवर डोज़
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
भीषण गर्मी का सटीक चित्रण बहुत सार्थक बन पड़ा है..आभार
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