आओ अपना धर्म निभाएँ।। स्वाभिमान को कभी न त्यागें, लालच के पीछे ना भागें, जग को उसका कर्म बताएँ। आओ अपना धर्म निभाएँ।१। सोच हमेशा रखना व्यापक, बन कर दिखलाना अध्यापक, विषयवस्तु सबको समझाएँ। आओ अपना धर्म निभाएँ।२। जल में कुटिल पंक फैला है, गंगा का आँचल मैला है, फिर से निर्मल धार बनाएँ। आओ अपना धर्म निभाएँ।३। कुदरत की लीला अद्भुत है, जीवन थोड़ा काम बहुत है, पाप नहीं कुछ पुण्य कमाएँ। आओ अपना धर्म निभाएँ।४। राहू, वक्र-चन्द्र खा जाता, सरल सदा मंजिल को पाता, कभी विरल मत पथ अपनाएँ। आओ अपना धर्म निभाएँ।५। मन भी होगा तन भी होगा, सुलभ न ऐसा जीवन होगा, जाने कब मानुष तन पाएँ। आओ अपना धर्म निभाएँ।६। |
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रविवार, 17 जून 2012
"आओ अपना धर्म निभाएँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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अर्थपूर्ण ... सुंदर आव्हान
जवाब देंहटाएंनीतिपरक दोहे, सरल और प्रभावी..
जवाब देंहटाएंबहुत ही सराल शब्दों में बहुत अच्छे विचार ....
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण प्रेरक रचना,,,,,
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर वाह!...बधाई
जवाब देंहटाएंअच्छी सीख देती रचना
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत सुन्दर सन्देश देता गीत सर....
जवाब देंहटाएंहम बदलेंगे जग बदलेगा
धीमे सही मगर संभलेगा
गीत हौसले का रच जाएँ
आओ अपना धर्म निभाएं.
सादर बधाई/आभार
bahut badhiya rachna
जवाब देंहटाएंइसी लिये तो बुजुर्गो ने कहा है कि सांच को आंज नाही
जवाब देंहटाएंयुनिक तकनीकी ब्लाग
बढ़िया
जवाब देंहटाएंप्रेरक छंद |
उत्कृष्ट बंद ||
आभार |
सुन्दर सीख देती सार्थक रचना
जवाब देंहटाएं