किन्तु कितने मौत से सब बेख़बर हैं। आयेंगे चौराहे और दोराहे भी, किन्तु सबकी एक सी होती डगर हैं।। जिन्दगी में स्वप्न सुन्दर हैं सजाये, गगनचुम्बी भवन सुन्दर हैं बनाये, साथ तन नही जायेगा, तन्हा सफर हैं। किन्तु कितना मौत से सब बेख़बर हैं।। बन्धु और बान्धव मिलाने खाक में ही जायेंगे, देह कुन्दन कनक सी सब राख ही हो जायेंगे। खेलते हैं खेल को ज़िन्दा शज़र हैं। किन्तु कितना मौत से सब बेख़बर हैं।। धार में दरिया की सारी अस्थियाँ बह जायेंगी, सब तमन्नाएँ धरी की धरी ही रह जायेंगी, स्वर्ग की सरिता में, बेनामी भँवर हैं। किन्तु कितना मौत से सब बेख़बर हैं।। |
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शनिवार, 16 जून 2012
"मौत से सब बेख़बर हैं" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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शाश्वत सत्य को बयाँ करतीबेह्द उम्दा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंएकदम सत्य बात !
जवाब देंहटाएंछोड़ देना है एक दिन सब कुछ यही पर,
फिर भी दुष्ट नित लूट से भर रहे घर है !
शाश्वत सत्य ..यही है जीवन..
जवाब देंहटाएंएक ऐसा कटु सत्य, जिसे नाकारा नहीं जा सकता!..सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएंकलयुग ने है अपना जाल फैलाया ,
जवाब देंहटाएंसब को मोह जाल में फंसाया ,
शमसान में मृत देह देख कर,
इंसान के मन में ख्याल आता है ,
सब कुछ यहीं तो छोड़ जाना है ,
कोई कभी कुछ लेकर जाता है !!
आता है जब शमशान के बाहर ,
चंचल मन फिर घूम जाता है ,
अरे भाई बहुत देर हो गयी ,
और जरुरी काम याद आ जाता है !!
आध्यात्मिक संदेश देती अच्छी रचना।
जवाब देंहटाएंसब ठाठ यहीं रह जाएगा, जब लाद चलेगा बंजारा...!
यही जीवन का कटु सत्य है,,,,
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन सुंदर रचना के लिये बधाई,,,,,शास्त्री जी,
RECENT POST ,,,,,पर याद छोड़ जायेगें,,,,,
बन्धु और बान्धव मिलाने खाक में ही जायेंगे,
जवाब देंहटाएंदेह कुन्दन कनक सी सब राख ही हो जायेंगे.... कटु सत्य
बिल्कुल सच कहा है आपने ... बेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबुद्ध खोज का एक आधार है यह दृश्य..
जवाब देंहटाएंसही बात कही सर!
जवाब देंहटाएंसादर
शास्वत सत्य है ये
जवाब देंहटाएंकेवल आँख फेर लेते हैं हम.....
बेहद शसक्त अभिव्यक्ति
सादर !!!
बढ़िया पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंबढ़िया भाव -
दर्शन-
मौत से जो सौत सी हम डाह करते |
जिन्दगी की बेवजह परवाह करते |
सत्य शाश्वत एक ही रविकर समझ-
हर घडी हर सांस में क्यूँ आह भरते ||
जिन्दगी में स्वप्न सुन्दर हैं सजाये,
जवाब देंहटाएंगगनचुम्बी भवन सुन्दर हैं बनाये,
साथ तन नही जायेगा, तन्हा सफर हैं।
किन्तु कितना मौत से सब बेख़बर हैं।।
स्वर्ग की सरिता में, बेनामी भँवर हैं।
किन्तु कितना मौत से सब बेख़बर हैं।।
फिर भी कितने लोग जीतें हैं यहाँ बेनामी खाते सी ज़िन्दगी ,
रचना शास्त्रीजी की अचरज से भरी ,मौत का गर खौफ हो तो क्यों बने कोई राम लाल
सत्य वचन!
जवाब देंहटाएंसाक्षात सत्य
जवाब देंहटाएंसत्य को उद्घाटित करती हुई रचना.बहुत अच्छी प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंतल्ख़ वास्तविकता – को सहज ढ़ंग से बेपर्द करती कविता मन में मंथन उत्पन्न करती है।
जवाब देंहटाएंkavita me dam hai
जवाब देंहटाएंbahut acchi rachna mayank daa
जवाब देंहटाएंsaadar
शाश्वत सत्य!
जवाब देंहटाएं