♥ किसान ♥
सूरज चमका नील-गगन में।
फैला उजियारा आँगन में।।
करता खेतों को प्रस्थान।।
मेहनत से अनाज उपजाता।
यह जग का है जीवन दाता।।
खून-पसीना बहा रहा है।
स्वेद-कणों से नहा रहा है।।
जीवन भर करता है काम।
लेता नही कभी विश्राम।।
चाहे सूर्य अगन बरसाये।
चाहे घटा गगन में छाये।।
यह श्रम में संलग्न हो रहा।
अपनी धुन में मग्न हो रहा।।
मत कहना इसको इन्सान।
यह धरती का है भगवान।।
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गुरुवार, 17 जनवरी 2013
"जय किसान" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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शास्त्री जी सुन्दर गीत के माध्यम से आपने सच कहा "किसान " ही धरती का भगवान् है.
जवाब देंहटाएंNew post कुछ पता नहीं !!! (द्वितीय भाग )
New post: कुछ पता नहीं !!!
प्रभावशाली ,
जवाब देंहटाएंजारी रहें।
शुभकामना !!!
आर्यावर्त (समृद्ध भारत की आवाज़)
आर्यावर्त में समाचार और आलेख प्रकाशन के लिए सीधे संपादक को editor.aaryaavart@gmail.com पर मेल करें।
यह कविता तो प्राथमिक विद्यालय के सिलेबस में डालने योग्य है.
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली आलेख
जवाब देंहटाएंखून-पसीना बहा रहा है।
स्वेद-कणों से नहा रहा है।।
जीवन भर करता है काम।
लेता नही कभी विश्राम।।
बहुत सुंदर उम्दा प्रस्तुति,,,
जवाब देंहटाएंकिसान ही अन्नदाता है
कड़ी मेहनत कर खाता है
देश का जीवन दाता है
इसीलिये भगवान् कहलाता है ...
बहुत सुंदर प्रभावशाली प्रस्तुति,,,
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली बेहतरीन रचना।।।
जवाब देंहटाएं:-)
bahut badhiya rachna
जवाब देंहटाएंदेश को सशक्त आधार दे रहे हैं दोनों..
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया....
जवाब देंहटाएंअन्नदाता किसान.....
सादर
अनु
बहुत सुंदर, अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना स्कूल पाठ्य कर्म के लिए सर्वथा उपयुक्त .
जवाब देंहटाएं