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रविवार, 13 जनवरी 2013
"लोहिड़ी के दोहे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति सोमवार के चर्चा मंच पर ।। मंगल मंगल मकरसंक्रांति ।।
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत ही प्यारे और प्रेरक दोहे हैं।
जवाब देंहटाएंलोहड़ी की शुभकामनाएं!
बहुत सुन्दर...लोहड़ी और मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सन्देश देते दोहे...हार्दिक शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंआप सभी तिल -संक्रांति की हार्दिक बधाई ...
जवाब देंहटाएंजाने को है शिशिर ऋतु , आने को ऋतुराज
जवाब देंहटाएंआग जला कर झूम लें,हम तुम मिलकर आज ||
लोहिड़ी और मकर संक्रांति की शुभ कामनायें.........
सुन्दर संदेश,लोहिड़ी और मकर संक्रांति की शुभ कामनायें.
जवाब देंहटाएंप्रेरक दोहे …………लोहड़ी की शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंपर्यावरण की उदास परतों को उधेड़ती है यह रचना नया रूपकात्मक भेष भरे .बढिया बिम्ब ,सशक्त अभिव्यक्ति अर्थ और विचार की .संक्रांति की मुबारकबाद .आपकी सद्य टिप्पणियों के लिए
जवाब देंहटाएंआभार .
मुबारक मकर संक्रांति पर्व .
"लोहिड़ी के दोहे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
पर्व लोहिड़ी का हमें, देता है सन्देश।
मानवता अपनाइए, सुधरेगा परिवेश।१।
प्रेम और सद्भाव से, बनते बिगड़े काज।
मूँगफली औ' रेवड़ी, बाँटो सबको आज।२।
गुड़ में भरी मिठास है, तिल में होता स्नेह।
खाकर मीठा बोलिए, बना रहेगा नेह।३।
बेटी रत्न अमोल है, कुदरत का उपहार।
बेटा-बेटी में करो, समता का व्यवहार।४।
दो पहियों के बिन नहीं, गाड़ी का आधार।
नर औ' नारी के बिना, सूना है संसार।५।
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आप सबको मकर संक्रान्ति की ढेरों शुभकामनायें।
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