आँखों का सागर है रोता,
अब
मनुहार कहाँ से लाऊँ?
सूख गया
भावों का सोता,
अब वो
प्यार कहाँ से लाऊँ?
पैरों
से तुमने कुचले
थे,
जब उपवन
में सुमन खिले थे,
हाथों
में है फूटा लोटा,
अब
जलधार कहाँ से लाऊँ?
अब वो
प्यार कहाँ से लाऊँ?
छल की
गागर में छल ही छल,
रस्सी
में केवल बल ही बल,
हमदर्दी
का पहन मुखौटा,
जग को
बातों से भरमाऊँ।
अब वो
प्यार कहाँ से लाऊँ?
जो बोया
वो काट रहे हैं,
तलुए
उसके चाट रहे हैं,
अपना
सिक्का निकला खोटा,
अब कैसे मैं हाथ मिलाऊँ?
अब वो
प्यार कहाँ से लाऊँ?
|
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शुक्रवार, 18 जनवरी 2013
"प्यार कहाँ से लाऊँ?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत बढ़िया है गुरु जी ||
जवाब देंहटाएंआभार ||
रस्सी पर बल हैं पड़े, रहे बलबला ऊंट |
हटाएंलाल मरुस्थल हो रहे, पर कानो में खूंट |
पर कानो में खूंट, नहीं जूँ रेंग रहे हैं |
टूट खड्ग की मूंठ, सभी अरमान बहे हैं |
शत्रु काट ले शीश, यहाँ पर दारू खस्सी |
मद में सत्ताधीश, साँप को समझें रस्सी ||
वाह ... बहुत ही बढिया।
जवाब देंहटाएंbehtreen prastuti
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट प्रस्तुति बहुत बढ़िया *****छल की गागर में छल ही छल,
जवाब देंहटाएंरस्सी में केवल बल ही बल,
हमदर्दी का पहन मुखौटा,
जग को बातों से भरमाऊँ।
अब वो प्यार कहाँ से लाऊँ? "pyar to ek bahana ho gaya hai,pyar ka symbl lal tikona ho gya hai........"
वाह ! प्रवाहमयी रोचक कविता..
जवाब देंहटाएंकाँटों में फूलों की कोमलता कहाँ से लायें..
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (19-1-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ!
दिखावा का जमाना है ....बहुत खूब तस्वीर दिखलाई आपने ...
जवाब देंहटाएंलोगों के अन्दर छल-छद्म भर चुका है.
जवाब देंहटाएंसंसार बदल चूका है ..सभी मुखौटा ओढ़े हैं ..
जवाब देंहटाएं'त्याग'मे ही 'प्यार' है।
जवाब देंहटाएंबात की बात कि बेबात की फिक्र ---विजय राजबली माथुर
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति... जो बोवा वो काट रहे हैं.. अब वो प्यार कहा से लाऊं..उम्दा
जवाब देंहटाएंबढिया रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुदर
बहुत बढ़िया प्रस्तुति,,,शास्त्री जी बधाई ,,
जवाब देंहटाएंrecent post : बस्तर-बाला,,,
वो प्यार सचमुच नही आयेँगा
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंछल की गागर में छल ही छल,
रस्सी में केवल बल ही बल,
हमदर्दी का पहन मुखौटा,
जग को बातों से भरमाऊँ।
अब वो प्यार कहाँ से लाऊँ?
बेहतरीन सांगीतिक रचना रिमझिम फुहार सी ,बलखाती नार सी ,पायल की झंकार सी .......प्रवाह मय वेगवती धारा सी उद्दाम आवेग समेटे
है प्रश्न वाचक मुद्रा में ...
छल के गागर में छल ही छल...अब प्यार कहां से लाउं...एकदम सच..
जवाब देंहटाएं