धूप नहीं नभ में खिली, अंग ठिठुरता जाय।
सर्दी में दे ऊर्जा, गर्म-गर्म इक चाय।१।
आग सेंकने का चढ़ा, देखो कैसा चाव।
सर्दी में अच्छा लगे, जलता हुआ अलाव।२।
ठिठुरन से जमने लगा, सारे तन का खून।
शीतल ऋतु में आग से, मिलता बहुत सुकून।३।
बच्चे-बूढ़े आग को, सेंक रहे हैं आज।
भीषण शीत-प्रकोप से, ठिठुरा सकल समाज।४।
पहरा देते रातभर, कभी न मानें हार।
आग सेंकने आ गये, अब ये चौकीदार।५।
|
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
मंगलवार, 8 जनवरी 2013
"चाय और आग" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि &qu...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
बहुत ख़ूब वाह!
जवाब देंहटाएंआगे करके हाथ दो, सेंक रहे हैं आग ।
जवाब देंहटाएंशीत-लहर कटु गलन अति, जमते नदी तड़ाग ।
जमते नदी तड़ाग, गर्म कर चाय सुड़कते ।
रहे आग को खोद, आग फिर भी नहिं भड़के ।
दिल्ली दुर्जन आग, बदन में ऐसी लागे ।
करके निकृष्ट-पाप, कहीं पावे नहिं भागे ।।
बहुत खूब...मुझे तो तस्वीर देखकर और ठंड लगने लगी
जवाब देंहटाएंSo Cool Shartiji.
जवाब देंहटाएंतसवीरें देखकर गर्मी आ गई ! मौसम गुनगुना हो उठा !
जवाब देंहटाएंएक ओर ताप और साथ में चाय का साथ ...बहुत बढिया तालमेल
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंप्राणि मात्र के प्रति प्रेम से आप्लावित दोहे .
वाह बहुत लिखा है...बचपन की सारी अनुभूतियाँ लौट आयी मन में.
जवाब देंहटाएंचाय पीते पीते पढ़ने का आनन्द ही अलग है..
जवाब देंहटाएं