भारत भाग्यविधाताओं के,
पत्थर दिल कब
पिघलेंगे?
मौन तोड़कर, मातृभूमि के लिए
बोल कब
निकलेंगे?
घोटालों के
लिए,
हमारे नेता
आगे आते हैं,
गद्दारों के
आगे-पीछे,
अपनी पूँछ
हिलाते हैं,
अमर शहीदों के बलिदानों
का बदला, ये कब लेंगे?
जाने कितनी दामिनियाँ,
लज्जा को रोज लुटाती हैं,
उनके लिए नहीं संसद में,
चर्चाएँ हो पाती हैं,
लम्पट-दुराचारियों को,
जाने कब तक फाँसी देंगे?
लालकिले की प्राचीरों से,
थोथे दावे करते हैं,
भोली जनता का दामन,
ये महँगाई से भरते हैं,
अपनी कथनी को करणी में,
जाने कब ये बदलेंगे?
वोटों की घुट्टी पी-पीकर,
जननायक बलवान हुए,
राजनीति के निर्धन भिक्षु,
सत्ता पा धनवान हुए,
लोकतन्त्र के नरपिशाच,
ना जाने कब तक सुधरेंगे?
|
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शुक्रवार, 11 जनवरी 2013
"पत्थर दिल कब पिघलेंगे?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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ये कभी नहीं सुधरेंगे :)
जवाब देंहटाएंलालकिले की प्राचीरों से,
जवाब देंहटाएंथोथे दावे करते हैं,
भोली जनता का दामन,
ये महँगाई से भरते हैं....पता नहीं ये कब सुधरेंगे
आई मौनी अमाँ है, तमा तमीचर तीर |
जवाब देंहटाएंनारी मरती सड़क पर, सीमा पर बलवीर |
सीमा पर बलवीर, देश में अफरा तफरी |
सत्ता की तफरीह, जेब लोगों की कतरी |
बेलगाम है लूट, समंदर पार कमाई |
ढूँढ़ द्विज का चाँद, अमाँ यह लम्बी आई ||
बहुत खूब !दिल होते तो पिघलते !
जवाब देंहटाएंभारत भाग्यविधाताओं के,
जवाब देंहटाएंपत्थर दिल कब पिघलेंगे?
मौन तोड़कर, मातृभूमि के लिए
बोल कब निकलेंगे?
...उन्हें मालूम है जब हमारे बोल खुलेंगे तो क्या बोल होगें इस लिए वे चुप रहते हैं ...वो कहते हैं न काक: काक: पिक: पिक: काक: कृष्ण: पिक: अपि कृष्ण: को भेद: काकपिकयो: वसंत काले सम्प्राप्ते काक: काक: पिक: पिक:..
ये सुधरने के लिए पैदा नहीं हुए
जवाब देंहटाएंNew post : दो शहीद
ये कभी नहीं सुधरने वाला बिगडने मेँ हमारी सोच से भी ये परे हैँ :)
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट प्रस्तुति बेलगाम है सोच जाने कितनी दामिनियाँ,
जवाब देंहटाएंलज्जा को रोज लुटाती हैं,
उनके लिए नहीं संसद में,
चर्चाएँ हो पाती हैं,
लम्पट-दुराचारियों को,
जाने कब तक फाँसी देंगे?
लालकिले की प्राचीरों से,
थोथे दावे करते हैं,
भोली जनता का दामन,
ये महँगाई से भरते हैं,
अपनी कथनी को करणी में,
जाने कब ये बदलेंगे?
यह कभी नहीं सुधरेंगे यह बेचारे हैं ...
जवाब देंहटाएंजब तक हम (जनता) नही सुधरेगें तब तक नेता कहाँ सुधरने वाले,
जवाब देंहटाएंrecent post : जन-जन का सहयोग चाहिए...
देश के भाग्यविधाताओं के दिल में परिवर्तन का आसार नही दिख रहे है,इन कर्णधारो को हम जनता को ही सबक सिखाना होगा। बहुत ही भावपूर्ण एवं सार्थक प्रस्तुती।
जवाब देंहटाएंदिल पिघले तो राह मिलेगी,
जवाब देंहटाएंकब तक हाथ घरे बैठे हम।
ये स्वार्थी लोलुप बस कुर्सी के लिए जीते हैं ,उसी के लिए मरते हैं बाकी बातों के लिए इनके दिल में जगह कहाँ ये नहीं सुधरने वाले ,बढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबढिया, बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंअति उत्तम।
जवाब देंहटाएंमित्र,नव वर्ष मंगल मय !ताज़ा झकझकी पेश है-
जवाब देंहटाएंआँख मूँद कर, कान मूँद कर,नशा किये ये बैठे हैं |
'न्याय के ठेकेदार' देवता बड़ी 'अकड' में ऐंठे हैं ||
जब आयेगा होश, करेंगे न्याय सभी यह कहते हैं -
पर सन्देह जागेंगे क्या ये,अटूट नींद में लेटे है ||