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शनिवार, 5 जनवरी 2013
"रोज-रोज ही गीत नया है गाना" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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गा गा कर जिंदगी बिताना |
जवाब देंहटाएंफिर भी दुनिया मारे ताना |
अश्रु बहाना तन तड़पाना-
सम्मुख आये, करे बहाना ||
गंगा-गइया-मइया,
जवाब देंहटाएंसबको हमने है बिसराया.
दूध-दही के बदले में,
मदिरा का प्याला भाया,
...बहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति..पश्चिमी सभ्यता का अन्धानुकरण करते हुए हम अपनी सभ्यता और संस्कृति को भूलते जा रहे हैं..
नित नवीन हो गीत,
जवाब देंहटाएंमिलें हैं मीत हृदय के।
सच , सटीक भाव लिए पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना !!
जवाब देंहटाएंसार्थक अभिव्यक्ति
हटाएंगंगा-गइया-मइया,
सबको हमने है बिसराया.
दूध-दही के बदले में,
मदिरा का प्याला भाया,
दाल-सब्जियाँ भूल, मांस को
शुरू कर दिया खाना।
नूतन के स्वागत-वन्दन में,
डूबा नया जमाना।।
new post --mujhe ji lo lijiye
वाह बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंरात को हैपी न्यू इयर कह कर सोते हैं और जब घड़ी में 12 बज जाते हैं तब उठते है।
जवाब देंहटाएंडॉ साहब बहुत बढ़िया कही है यह शहर के साथ संवाद है शहर का परिचय पत्र हाई आधार कार्ड है .सुमधुर तराना है यह गीत ,बदलाव का फसाना है .
जवाब देंहटाएंगंगा-गइया-मइया,
सबको हमने है बिसराया.
दूध-दही के बदले में,
मदिरा का प्याला भाया,
दाल-सब्जियाँ भूल, मांस को
शुरू कर दिया खाना।
नूतन के स्वागत-वन्दन में,
डूबा नया जमाना।।
डॉ साहब बहुत बढ़िया कही है यह शहर के साथ संवाद है शहर का परिचय पत्र हाई आधार कार्ड है .सुमधुर तराना है यह गीत ,बदलाव का फसाना है .
जवाब देंहटाएंगंगा-गइया-मइया,
सबको हमने है बिसराया.
दूध-दही के बदले में,
मदिरा का प्याला भाया,
दाल-सब्जियाँ भूल, मांस को
शुरू कर दिया खाना।
नूतन के स्वागत-वन्दन में,
डूबा नया जमाना।।
सुन्दर व्यंग्य काव्य....बिलकुल सच्ची बातें कही हैं आपने.
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