धूल भरी क्यों आज गगन में?
क्यों है अँधियारा उपवन में?
सूरज क्यों दिन में शर्माया?
भरी दुपहरी में क्यों छाया? चन्दा गुम क्यों बिना अमावस? नजर नही आती क्यों पावस? क्यों है धरती रूखी-रूखी? क्यों है खेती सूखी-सूखी? छागल क्यों हो गई विदेशी? पागल क्यों है आज स्वदेशी? कहाँ गयी माता की बिन्दी? सिसक रही क्यों अपनी हिन्दी? प्यारी भाषा बहक रही क्यों? अंग्रेजी ही चहक रही क्यों? कहने भर की आजादी है! आज वतन की बर्बादी है!! नजर न आता कहीं अमन है! दागदार हो गया चमन है!! कहाँ हो गई चूक भयंकर? विष उडेलते हैं क्यों शंकर? रक्षक जब उत्पात मचाये! विपदाओं से कौन बचाये? आस लगाये यशोदा मइया! अब आ जाओ कृष्ण-कन्हैया!! |
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रविवार, 28 जुलाई 2013
"अब आ जाओ कृष्ण-कन्हैया" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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सपना जो पूरा हुआ! सपने तो व्यक्ति जीवनभर देखता है, कभी खुली आँखों से तो कभी बन्द आँखों से। साहित्य का विद्यार्थी होने के नाते...
बढ़िया आवाहन गीत -
जवाब देंहटाएंपर मुश्किलें इतनी ज्यादा है की अकेले कृष्ण भी क्या कर पायेंगे --
आभार गुरु जी-
सुन्दर आह्वान ... कान्हा के नाम ...
जवाब देंहटाएंउनका ही सहारा बाकी है अब लगता है .... नमस्कार शास्त्री जी ...
बहुत सही पुकार.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत सुंदर आह्वाहन ! वाकई कन्हैया तुम्हारी जरूरत है !
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया, सामयिक
जवाब देंहटाएंjai ho.
जवाब देंहटाएंबहुत सारे प्रश्न और समाधान भगवान के पास ही है
जवाब देंहटाएंसादर आभार!
अब है धरती प्यासी तुम बिन..
जवाब देंहटाएंअब एक कृष्ण को आना ही होगा !
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